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लघुकथाएँ - देश - हरनाम शर्मा
निबंध–अनुबंध
‘‘हैल्लो, रोहित! कैसे हो? भई, आज शाम, याद है ना! डॉ. सक्सेना अपने पुत्र विलास के डॉक्टर होने की खुशी में रंगीन पार्टी दे रहे हैं। सुभाष, विकास, मोहन, विभा, रंजू वगैरह सभी महफिल रंगीन बनाएंगे। आठ बजे तक पहुँच जाना। नाच गानों के लिए कानपुर से खास डांसर आएंगी। डिं्रक सर्व करने के लिए रंजू लीडरशिप में गोवा की बार–गर्ल्ज का इंतजाम है।...अरे भई, बोलते क्यों नहीं?....’’
‘‘सुनो, ऐसा है....’’
‘‘क्या ऐसा है.....मैं इंतजार करूँगा।’’
‘‘नहीं, नहीं रविवार को मैंने बिटिया को अपने पिता पर निबंध याद करते सुना.....वह रट रही थी.....मेरे पिता जी बहुत अच्छे हैं। वे बहुत चरित्रवान हैं। वे नशाबंदी अभियान में सहयोग देते है....। भई, मैं तो डर रहा हूँ। अब जब भी तुम्हारा फोन आता है आना तो दूर की बात! तुम्हारी बातें सुनते हुए भी डर लगता है। मैं न आ सकूँगा। मुझे माफ करना’’।
मोहन ने टेलीफोन रख दिया, उधर से निरंतर टेलीफोन की घंटियाँ बज रही हैं। मोहन टेलीफोन उठा ही नहीं रहे हैं।
 
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