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लघुकथाएँ - देश - हरदर्शन सहगल
एहसास
जैसे ही जाग खुली तो घबरा गई, ‘लो आज फिर देर हो गई।’ जैसे तैसे चप्पलों में पैर फँसाती हुई, दूध वाले के बाड़े जा पहुँची।
टीन का बड़ा दरवाजा अब तक बंद था। बार–बार जोर–जोर से बजाती रही।
अंतत: दरवाजा खुला, बहन जी इस वक्त।
–बस जरा देर से आँख खुली।
–अभी तो रात के दो बजे हैं।
–हे
–आइए अन्दर घड़ी देख लीजिए।
–ओह...भैया मुझे घर तक छोड़ आओगे।
रात को इस प्रहर में अकेले जाते डर लगता है।
 
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