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चरखा कातने वाली बूढ़ी अम्मा
नन्हें बाबा ने आजकल टी.वी. पर काटॅून फिल्में देखना बंद कर दिया है। इसके स्थान पर उसने न्यूज चैनल देखना शुरू कर दिया था। जल्दी उठकर अखबार टटोलना भी उसकी आदत बन गई थी। अब वह बड़ा बाबा बन गया था।
उसे आश्चर्य हुआ था उसमें यह परिवर्तन कैसे और कहाँ से आ गया। जब रहा नहीं गया तो उसने उससे पूछ ही लिया, ‘बेटे, आजकल न्यूज में इतनी दिलचस्पी कैसे हो गई है?’
नन्हा बाबा तो मानो उधार खाए बैठा था। सवाल सुनते ही उसका मुँह खुल गया, ‘मम्मी, इंडिया अब चाँद पर पहुँच गया है’।
‘हाँ, बेटे। पहुँच गया है। भारत ने चन्द्रयान भेजा है ना। इसके प्रेक्षण के बाद भारत दुनिया में छठा देश हो गया है।’
‘हाँ, अमेरिका रूस, यूरोप, जापान, चीन और इंडिया’। नन्हें बाबा ने जोश में आकर उँगलियों पर गिनते हुए कहा।
‘तो तुम इसके बारे में देखते–पढ़ते हो?’ उसने भेदी नजरों से टटोला।
‘मम्मी, इस चन्द्रयान ने वहाँ से फोटो भी भेजने शुरू कर दिए हैं’। बाबा ने उसकी बात कान धरने की बजाए किलकते हुए अखबार का पन्ना सामने कर दिया।
‘हूँ, चन्द्रयान चाँद का मानचित्र भी तैयार करेगा।’ उसने भी अपना ज्ञान बाँटा।
‘हाँ, मम्मी। चन्द्रयान हीलियम की भी खोज करेगा।’ नन्हें बाबा की नन्हीं आँखों में हीलियम की चमक थी, मानो वह हीलियम खोजते–ढूँढते चाँद की तरफ उड़ता चला जा रहा हो।
‘हाँ–हाँ, वह मैग्नीशियम, एल्युमीनियम जैसे तत्वों और खनिजों संसाधनों की भी खोज करेगा।’ उसने आह्लादित होते हुए कहा और उससे उत्साहित होते हुए बाबा बोला,
‘और....चाँद पर विकिरण का अध्ययन भी करेगा।’
‘हाँ, बेटे। उसमें लगा हुआ रेडोम (विकिरण मात्रा अनुवीक्षक : विमात्रानुवीक्षक) विकिरण का अध्ययन करेगा और यह रेडोम बुल्गारिया का है।’ नन्हें बाबा को जानकारी देते हुए उसने कहा। लेकिन नन्हा बाबा तो पहले से ही खुद को अद्यतन कर चुका है। छूटते ही बोला, ‘वह तो मुझे मालूम है। इतना ही नहीं, चन्द्रयान सौर वायु और चाँद के परस्पर प्रभावों का भी अध्ययन करेगा।’
‘हाँ, करेगा।’ वह बात कर तो रही थी, लेकिन उसका मूल प्रश्न इस बातचीत में कहीं गुम हो गया था। नन्हा बाबा अपनी रौ में बहते हुए बोलता ही जा रहा था, ‘चाँद के ध्रुवों पर पानी का भी पता लगाएगा।’
लेकिन इस विषय में नन्हें बाबा की सामान्य से अधिक रुचि को वह पचा नहीं पा रही थी। इसलिए बात की तह तक पहुँचने के लिए अंत में उसने इस पर ब्रेक लगाने का फैसला किया और नन्हें बाबा से सीधा सवाल किया। ‘हाँ भई हाँ, लगाएगा। इसके अलावा हमें काफी जानकारियाँ देगा। लेकिन....तुम क्या चाहते हो?’ उसका प्रश्न सुनकर वह क्षण भर के लिए हिचका। फिर उसने अपना मन पक्का करके अपने मन की बात बता दी।
‘मॉम, चन्द्रयान चरखा कातने वाली बूढ़ी अम्मा के बारे में कब बताएगा?’
वह नन्हें बाबा को निरुत्तर -सा देखती रह गई थी। उसका सवाल उसे तीर की तरह चुभ गया था। 386 करोड़ रुपए के चन्द्रयान में सभी देशवासियों का धन लगा हुआ था। सभी उससे अनगिनत उम्मीदें लगाए हुए थे। नन्हें बाबा ने भी अपने लिए कुछ आस लगा ली तो कौन सा आसमान टूट पड़ा।
लेकिन नन्हें बाबा के इस प्रश्न ने उसे दिन में ही चाँद–तारे दिखा दिए थे। आखिर उसी ने तो उसे बहलाने के लिए न जाने कितनी बार यह कहानी उसे सुनाई थी। अब वह किस मुँह से कहे कि चन्द्रयान ने चरखा कातने वाली उसकी बूढ़ी अम्मा का ऐसा प्रतिबिम्बन किया है कि उसमें इस दन्त–कथा का सदियों पुराना मिथक हवा हो गया है, बल्कि हीलियम हो गया है।
 
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