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बसेरा
ईमान अनाथ हो गया। जिस इंसान ने उसे इतने वर्ष दिल से लगाकर रखा था वह मर गया। क्रान्तिकारी पिता ने मरते समय अपने आठ वर्ष के बेटे को विरासत मे सौंपा था। अपने पिता की थाती ईमान को उसने सीने से लगाकर रखा। मातृभूमि की आजादी के लिए जेल गया, कोड़े खाए, जमीन जायदाद गँवाई पर उसे सम्भालकर रखा। आजादी मिली ऊँची कुर्सी मिली! देश के लिए बहुत कुछ किया! पर कुर्सी दोनों का बोझा सँभाल न सकी सो कुर्सी छोड़ दी। बस गया सीधे सादे आदिवासियों के बीच जहाँ दोनों का गुजारा हो सके, उनका जीवन सँवारने, उनके हक की लड़ाई लड़ते–लड़ते वह जर्जर हो गया और मर गया।
ईमान भटक रहा था एक बसेरे की खोज में। महान नेता का भाषण चल रहा था। उनकी अच्छी–अच्छी बात सुन वह साथ चल पड़ा। ‘‘कौन हो तुम?’’ ‘‘मैं ईमान आपके साथ रहना चाहता हूँ।’’ उन्होंने अपने चमचों की और इशारा कर कहा ठीक है ‘‘वह तुम्हारा इंतजाम कर देंगे।’’ चमचों ने उसे धकियाते हुए कहा कि हम क्या बेईमान हैं जो तुम्हें साथ रखें।
थोड़ा आगे मंत्री निवास दिखा। गेट पर चमचमाती गाड़ी खड़ी थी। गाड़ी से उद्योगपति का सेक्रेटरी खुसपुस कर रहा था। यहाँ जनता के प्रतिनिधि रहते हैं ठीक जगह पर आया। और वह चुपचाप अन्दर घुस गया। तभी ग्रामवासियों का जत्था फरियाद के साथ आ गया। मंत्री जी बहुत व्यस्त हैं कल आना। बिचारे पिटा मुँह ले चले गए। गाड़ी अन्दर दाखिल हो चुकी थी। उद्येगपति सीधे मंत्री जी के कमरे में पहुँचे। सेक्रेटरी के हाथों में दो सूटकेस थे। मंत्री जी के इशारे पर सचिव सूटकेस अन्दर ले गया। ईमान सर पर पैर रख भागा।
भागते–भागते दम लेने को रुका तो सामने नामी जज की कोठी थी। पक्का ठिकाना मिल गया, न्याय पालके के यहाँ। पर यह क्या बंगले के पीछे कौन दो लोग बात कर रहे हैं। एक चेहरा तो पहचाना है। टी.वी. पर सारे दिन देखा था इस स्मगलर का। उल्टे पाँव फिर चल पड़ा। अँधेरा हो गया था। सामने डाक्टर का क्लीनिक दिखा। साँस फूल रही थी थकावट से। नर्स के ड्यूटी रूम में पहुँचा। वहाँ नर्सें बात कर रही थीं दुबई से आए शेख के लिए किडनी का इन्तजाम हो गया। जनरल वार्ड के पेशेन्ट श्याम का हर्निया का आपरेशन है उस समय उसकी एक किडनी निकाल ली जाएगी। हे भगवान यहाँ तो रक्षक ही भक्षक है। वह उल्टे पाँव भागा। रात गहरा गई थी। सामने मन्दिर था। चलो ईश्वर के दरवार में शरण मिल ही जाएगी। भक्तजन जा चुके थे तभी एक युवती पूजा की थाल लिये आई। प्रतिमा के सामने आँख बंद किए विनती कर रही थी। तब तक एक छाया ने धीरे से कपाट बंद कर दिया।
आधी रात बीच सड़क पर खड़ा ईमान सोच रहा था कि अब छल–कपट–लोभ–काम–क्रोध दंभ उसे कहीं टिकने नहीं देंगे चलो आत्महत्या कर ले। सामने एक दुखियारी बच्चे के साथ आती दिखी। बच्चे ने झुककर जमीन से कुछ उठाया। माँ देख सोने की जंजीर पड़ी है। इसे बेच हम ढेर सारा चावल आटा खरीद लेंगे। नहीं बेटा ,इसे पड़ी छोड़ दो जिसका गिरा है वह शायद ढूँढता आ जाए। पर माँ कोई और उठा ले तो। कोई बात नहीं बेटा हमारा धर्म हमारे साथ। ईमान खुशी से खिल उठा। उसे सहारा मिल गया।
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