बेटे ने पिता से जो कुछ सीखा उसे अमल में लाया। बचपन से अब तक उसने पिता की दी हुई सीख को भुलाया नहीं। पिता ने कहा था कि हिंसा बुरी होती है। इसलिए कभी किसी पर अत्याचार मत करना। पुत्र ने अपनी समझ में एक चींटी को भी नहीं मारां शादी हुई तो पत्नी को भी यही सीखने के लिए प्रेरित किया। पत्नी इस मामले में सुसंस्कृत नहीं थी लिहाजा उसके पैरों से कभी–कभी कोई चींटी मर जाती थी। इस पर पति बहुत क्रोधित होता। एक दिन तो विवाह समारोह में दोनो पति–पत्नी साथ जा रहे थे कि पत्नी का पैर एक चींटी पर पड़ गया, पति ने वहीे सब लोगों के सामने पत्नी को बुरी तरह डांटा। पत्नी मन मसोस कर रह गई। पति को सभी ने सराहा, देखो पिता के नक्शेकदम पर कितनी मजबूती के साथ चल रहा है पुत्र।
गृहस्थी बसने के साल भर बाद पत्नी के पैर भारी होने की सूचना मिली तो वह प्रसन्न से फूला नहीं समा रहा था। उसने पत्नी से कहा कि इस मामले में हमें कोई लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए। आज ही डाक्टर के पास चलकर चैकअप कराएँगे। डाक्टर ने चैकअप कर पत्नी के गर्भवती होने की पुष्टि की। कुछ समय और बीता। इस बार जब वह डाक्टर के पास चैकअप के लिए पत्नी को ले गया तो उसने चाहा कि डाक्टर होने वाले बच्चे लिंग परीक्षण भी करें। बहुत आग्रह के बाद डाक्टर ने परीक्षण कर बताया कि होने वाला शिशु कन्या है। पतिे का उत्साह गायब हो गया। उसने कहा हमें यह बच्चा नहीं चाहिए। घर लौटते वक्त पति प्रसन्न था। मायूस पत्नी अपने अंहिसा प्रेमी पति के पीछे–पीछे चल रही थी।
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