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आखिरी उडान
हीरामन तोता दासी की असावधानी से पिंजरे से मुक्त हो गया। राजमहल की अटारी पर बैठा और फिर जंगल की ओर उड गया।
जंगल में हर तरफ हरियाली देखकर हीरामन बौरा गया। एक बरगद पर बैठा और चिल्लाया –‘‘यह पेड मेरा है।’’ बरगद पर बैठे पक्षी घबराकर पास के पीपल पर चले गए। हीरामन फिर उडा, पीपल पर पहुच कर फिर चीखा –‘‘भागो ! यह पेड मेरा है।’’
डरे हुए पक्षी पीपल से उडकर नीम पर चले गए। हीरामन ने नीम पर पहुच कर चीख–चीख कर कहा –‘‘भागो–भागो यह पेड भी मेरा है।’’ पक्षी वहाँ से भी उड गए। जामुन के पेड पर बैठे बंदरों के बच्चे हंसने लगे। जंगल में अधिकार प्रदर्शन का यह चलन अजूबा था।
पास के बबूल पर बया के कई घोंसले थे। तोते के अहंकार को चोट लगी। वह चिल्ला–चिल्लाकर कह रहा था –‘‘पेड खाली करो, यह पेड मेरा है।’’ चीखता हुआ हीरामन अत्यंत तीव्र गति से बबूल की ओर उडा। बंदर तालियां बजाने लगे। एक बूढे बंदर ने छोटे बंदरों को तालियां बजाने से रोकते हुए व्यंग्य पूर्वक मुस्कुराकर कहा –‘‘जाने दो, यह इसका आखिरी पेड है।’’
तीव्र गति की झोंक में उडता हीरामन बबूल के कांटों में उलझकर लहूलुहान हो गा। अंतिम सांसें लेते हुए उसने अपनी आंखें पलट दीं।
सभी पक्षियों ने हीरामन को बबूल के काँटों में फँसा देखकर उदास आंखों से राजमहल की अटारी को कोसा।
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