मेमसाहब गाड़ी धो दी है, अब मुझे जल्दी जाने दीजिए। घर में एक बूँद भी पानी नहीं है, मुझे दूर जाकर पीने का पानी भरना है।
‘‘सुन तू रोज कुछ न कुछ बहाना सोच कर आता है। अभी तो छत की धुलाई करनी है, शाम को एक छोटी से गैदरिंग है।’’
रामसिंह बेचारा कुड़कुड़ाता पाइप लेकर छत पर चला गया। सोचता जाता कि पानी के बगैर दाल भी नहीं उबाल पाएगी विमला और फिर बच्चा कैसे खा पाएगा कुछ।
छत साफ करके नीचे आ ही रहा था तभी मेमसाहब तेजी से ऊपर चढ़ीं। छत की साफ–सफाई देख एकदम प्रसन्न हो गईं। उसने धीरे से पूछा, ‘‘मेमसाहब अपने पीने का पानी यहीं से भर ले जाऊँ, वहाँ हैंडपंप बड़ी मुश्किल से पानी देता है।’’
अच्छा! तुम लोगों की यही आदत खराब है, उँगली पकड़कर पहुँचा पकड़ना चाहते हो, सुनो घर जाकर पानी भर आओ। शाम के लिए बाजार से सामान लाना है।
दो कट्टी पानी के लिए अभी रामसिंह को दो किलोमीटर जाना पड़ेगा।
मेमसाहब ने पानी का पाइन लॉन में लगा दिया था।
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