अनाथ आश्रम की सीढ़ियों पर गुमसुम बैठी आलिया न जाने किन ख्यालों में खोई हुई थी कि अचानक अपना नाम सुनकर चौक पड़ी।
‘‘आलिया, तुम्हें अब्बाजी बुला रहे हैं आश्रम के चपरासी ने पुकारा।
अब्बाजी दरअसल इस आश्रम कत्र्ता–धत्र्ता थे। नौकरी से रिटायर होने के पश्चात उन्होंने इस आश्रम का कार्यभार सँभाला था। वे बहुत ही नेक इंसान थे आश्रम के बच्चे उन्हें अब्बाजी कहकर पुकारते थे। आलिया ने सोचा, कोई काम होगा, इसलिए बुलाया है। वह तुरंत सीढ़ियों से उठकर उनके पास पहुँच गई और बोली–
‘‘अब्बाजी, आपने बुलाया था!’’
‘‘हाँ, आलिया,तुम जल्दी से तैयार हो जाओ।’’
‘‘कहाँ जाना है....?’’
‘‘तुम्हारे घर!’’
आलिया अब वहाँ नहीं जाना चाहती थी किंतु न चाहते हुए भी उसे वहाँ जाना पड़ा। जीप उसी स्थान पर जाकर रुकी ;जहाँ कभी उसका घर हुआ करता था। घर....एक भरा–पूरा परिवार, किंतु आज वही घर एक मलबे के ढेर में तब्दील हो चुका था। आलिया को देखकर आस–पड़ोस के लोग जमा हो गए और उसे सांत्वना देने लगे, पर आलिया कुछ समय पहले की बात याद करने लगी उसकी आँखों के सामने वह दृश्य सजीव हो उठा जब वह अंतिम बार अपने भाई–बहन के साथ खेल रही थी, कि अचानक एक धमाका हुआ। विस्फोट इतना शक्तिशाली था कि आस–पास के मकान भी क्षतिग्रस्त हो गए। केवल आलिया ही बच गई वह भी जख्मी हालत में। जब उसे होश आया तो मालूम पड़ा। कि वह अपने माँ–बाप, भाई–बहन सब कुछ खो चुकी है। कुछ दिनों तक तो सगे–संबंधियों ने उसे अपने पास रखा, पर बाद में अनाथ आश्रम भेज दिया।
आलिया अतीत की स्मृतियों में खोई हुई थी। तभीएक बुजुर्ग ने उससे कहा, ‘‘बेटी, हमने इस मलबे के ढेर से कुछ सामान निकाल लिया है। चाहते हैं कि तुम इन चीजों को अपने साथ ले जाओ, क्योंकि इन सबकी इकलौती वारिस अब तुम ही हो।’’ यह कहते हुए उन्होंने आँगन में पड़े सामान की ओर इशारा किया।
आलिया उस ओर बढ़ी। वहाँ पर बहुत–सी कीमती चीजें पड़ी हुई थीं। वह काफी देर तक उन चीजों को गौर से देखती रही। उसकी आँखों से आँसू बह गए। फिर उसने काँपते हुए हाथों केवल टूटे हुए खिलौने उठाए ,जिनसे कभी वह अपने भाई–बहन के साथ खेला करती थी और धीमे कदमों से जीप की ओर चल पड़ी। |