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लघुकथाएँ - देश - पूरन मुद्गल
पहला झूठ
बच्चे ने कब मेरी जेब से पैन निकाला, मुझे पता ही नहीं चला। देखते–देखते उसने पैन की कैप उतार ली। निब फर्श पर मारने को हुआ तो मैंने तुरन्त उसके हाथ से पैन छीन लिया। वह जोर–जोर से चिल्लाने लगा। उसे शान्त करने के लिए पैन देना पड़ा। उसने तुन्त कैप खींची और पैन का रिश्ता फिर फर्श से जोड़ने लगा। पैन बहुमूल्य था और मैं नहीं चाहता था कि बच्चा खेल–खेल में उसे बेकार कर दे।
मैंने बच्चे का ध्यान बँटाया। पैन उसके हाथ से खींचकर फुर्ती से अपना हाथ पीठ के पीछे किया, दूसरे हाथ से ऊपर की ओर संकेत करते हुए कहा, ‘‘पैन....चिया....।’’ इस बार वह रोने की बजाय आकाश की ओर नजर उठाकर चिडि़या को देखने लगा। उसके भोले मन ने मान लिया कि पैन चिडि़या ले गई।
एक दिन वह बर्फ़ी का टुकड़ा खा रहा था। मैंने कहा, ‘‘बिट्टू, बर्फ़ी मुझे दो।’’
डसने तुरन्त बर्फ़ी वाला हाथ पीठ के पीछे किया और तुतलाती भाषा में कहा, ‘‘बफ्फी.....चिया....।’’
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