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सुकेश साहनी
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रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
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डर
अमावस की रात। आधी रात का वक्त। वह नाइट शो में फिल्म देखकर निकला और अंधेरे के कारण रास्ता भटक गया। एक गली में जैसे ही उसने साइकिल मोड़ी तो भौंकते हुए कुत्तों से उसका सामना हो गया। उसका कलेजा हिल गया। चौदह इंजेक्शन....हॉस्पिटल के गर्दिशभरे चक्कर.....पत्थर होता पेट....बाप रे बाप! उसे पिछली बार का कुत्ते के काटने का अपन अनुभव याद हो आया।
उसने फौरन साइकिल मोड़ी और दूसरी गली की ओर मुड़ गया। कुछ दूर ही गया होगा कि फिर सहमकर ठिठक गया। सामने से चार पुलिसवाले सड़क पर डण्डे बजाते और बूट खटखटाते हुए चले आ रहे थे। उसके पेट का पानी हिल गया। आँखों के आगे अन्धेरा–ही–अन्धेरा घिर गया.....आगे कुआँ, पीछे खाई....क्या करे वह?
कुछ देर ठिठके रहने के बाद उसने एक निर्णय–सा ले साइकिल उस गली की ओर मोड़ दी ,जिधर कुत्ते भौंक रहे थे।
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