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लघुकथाएँ - देश - अनीता मिश्रा
यलो लाइट
अदिति के मस्तिष्क में रह–रह कर कहीं पढ़ी हुई लाइन गूंज रही थी......, जब तब सुपात्र न मिले प्रेम मरता नही है। मुम्बई जैसे शहर में जहॉ भीड़ में हर कोई अकेला है। सब अपने – अपने अकेलेपन के द्वीप में बन्द हैं। अमित उसके द्वीप में कब आ गया उसे समझ में ही नही आया। एक ही ट्रेन का सफर एक ही स्टेशन पर उतरना........ और अमित अब उसे वह सुपात्र लगने लगा। जिसमें वह स्वंय को रिक्त कर देना चाहती हो..... लेकिन फिर राज कौन है। जिससे उसने प्रेम विवाह किया। सारे परिवार की मर्जी के विपरीत जाकर अदिति समझ नही पा रही थी कि राज सुपात्र नही था तो उससे उसे प्रेम क्यों हुआ। शादी क्यों की और सुपात्र था तो उसके मन में द्वंद्व और भटकाव क्यों ?


अमित से निकटता क्या राज की अनुपस्थिति से उपजे अकेलेपन के कारण थी। अदिति अपनी रिक्तता को अमित के प्रेम से भर रही थी। अमित सुपात्र था या फिलर ? डोरबेल ने अदिति के चिन्तन पर ब्रेक लगा दिया। अदिति के अनुमान के अनुसार दरवाजे पर अमित ही था। इतवार की शाम दोनों अक्सर साथ ही बिताते थे। अदिति तो इस शहर में अकेले थी। अमित पता नही घर वालों को कैसे और क्या समझाकर आ जाता है ।
‘‘अमित तुमसे कुछ पूछना था’’-अदिति ने काफी गम्भीर होते हुए कहा। अमित ने माहौल हलका करने के लिये नाइंटी डिग्री पर झुक कर कहा ‘‘जो कहना है कहो, जो करना है करो;आय एम एट योर सर्विस डियर’’-अमित की बात पर बिना किसी रिएक्शन के अदिति ने कहा-‘‘अमित डोंट यू थिंक वी आर चीटिंग अवर पार्टनर्स ?’’
कुछ देर की चुप्पी के बाद अमित ने कहा-‘‘यार कितनी खुबसूरत शाम है ।तुम अपनी फेवरेट यलो लाइट जलाओ न, जिसमें हम दोनों एक दूसरे को भी मुश्किल से देख पाते हैं।’’

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