सारी उल्टी -सीधी बातें हराधन बाबू के सेवानिवृत्त होने और पत्नी के साथ छोड़ जाने के बाद शुरू हुईं।
जमापूँजी कुछ बेटी की शादी और कुछ बेटों की सुविधाओं की भेंट चढ़ गई। शेष जीवन बड़े पुत्र के उस मकान में बिताने की मजबूरी थी जिसे बनवाने के क्रम में उनके पी.एफ के पैसे रेत बालू में बिला गए थे। पहले ढेर सारी जगहें थीं उनके लिए। पूरे घर में वे चाहे जहां टहलें,घूमें कोई रोक टोक नहीं। घर के सबसे उम्दा, सबसे हवादार कमरे में पोते–पोतियों के बीच उनका बिस्तर भी था ;लेकिन बहू की माँ क्या आयी कि उनके लिए जगह छोटी पड़ गई। उनका बिस्तर बरामदे से सटे तंग अँधेरे कमरे में डाल दिया गया। इतना ही नहीं जब नया फ़्रिज ,टीवी आया तो पुराने को रखने की समस्या आ खड़ी हुई। जगह की कमी की मार तब भी हराधन बाबू को झेलना पड़ा। उनका बिस्तर बरामदे में लगा दिया गया।
एक दिन कार्यालय से आते ही बेटे ने बाबू जी के साथ चाय पीने की इच्छा जताई। हराधन बाबू की छठी इन्द्री ने आगत तूफान की चेतावनी दी। वे सहम गये।
–‘बाबू जी,’ चाय की चुस्की के साथ बेटे ने थोड़ी झिझक के साथ कहना शुरू किया–‘यूनियन के प्रतिनिधियों का तीन दिवसीय सम्मेलन होने जा रहा है। चार पाँच लोग मेरी जान पहचान के निकल आये हैं। रात में उनके सोने की व्यवस्था करनी होगी। सोचता हूँ बरामदे में दरी डलवा दूँ। आप के लिए मैंने बगल वाले वर्मा जी से बात कर ली है। आप का बिस्तर उनके बरामदे में लगवा देता हूँ। आप को थोड़ी तकलीफ तो जरूर होगी ,लेकिन तीन ही दिनों की बात है बाबू जी।’
आवाज जैसे अंधे कुएँ से आयी हो हराधन बाबू को सहमति देनी पड़ी–‘ठीक है बेटा।’ बाबूजी की आँख में पानी आया, बेटा के चेहरे पर चमक।
हराधन बाबू ने भविष्य में फिर बिस्तर बदलने का मौका नहीं दिया। उस रात को ही सदा के लिए जगह छोड़ गये।
-0-
|