गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
गुमशुदा क्रेडिट कार्ड
‘‘मम्मी। आप भी क्रेडिट कार्ड बनवा लीजिए।’’
‘‘धत् मैं इसका क्या करूँगी?’’
कभी आप बाजार में हो और रुपए खत्म हो जाँए तो?
‘‘तो क्या घर आकर और रुपए ले जाऊँगी या शॉपिंग बंद कर दूँगी।’’
बेटा थोड़ा घबरा सा गया, ‘‘नहीं मम्मी क्रेडिट कार्ड हमेशा पास में रहना चाहिए। पता नहीं कब क्या ज़रूरत पड़ जाए। वह अपने हाथ में नई एम.एन.सी. की नौकरी से कमाए कार्ड को दिखा कर कहता है।
उसे लगता है एम.एन.सी. की नौकरी, कम्प्यूटर, क्रेडिटकार्ड, मोबाइल, एस.एम.एस....एम.एम.एस. आदि के अलावा उष्ण रिश्तों को ये क्या जाने?
‘‘अरे। बीच बाजार में रुपए ख़त्म भी हो गए तो क्या? ऐसा कौन सा पहाड़ टूट पड़ेगा? बहुत ज़रूरी हुआ तो पास के परिचित के यहाँ से रुपए ले लेंगे।’’ खैर...वह बच्चों के व पति के क्रेडिट कार्ड को देख देखकर खुश होती रहती है।
सप्ताहांत में दोनों बेटे अपने शहर से आकर डाइनिंग टेबल पर गप्पें मार रहे हैं। बड़ा बताता है ‘‘मम्मी। जब मैं अहमदाबाद गया था तो छोटु को मैंने इसके आॅफिस से सनीचे बुला लिया।’’
छोटा कहता है, ‘‘मैंने इसे अपना ऑफिस दिखाने के लिए ऊपर बुलाया था, ये आया ही नहीं।’’
‘‘मेरे पास टाइम कम था। ऑफिस में क्या देखना वहीं फ़र्नीचर, ए.सी मम्मी। जब ये नीचे आया तो बड़े प्यार से खुश होकर गले मिला, मजा आ गया।’’
मैं बीच में कूद पड़ती हूँ, ‘‘मैंने ही तो इसे ये सिखाया है।’’
बड़ा व छोटा ज़ोर ठहाका लगाते हैं ‘‘हो हो जो भी हम अच्छा काम करते हैं आप हमेशा उसे सिखाने का खुद ‘क्रेडिट लेना चाहती हैं।
मैं आँखें तरेरकर कहती हूँ,‘‘ठीक ही तो कह रही हूँ जब छोटू छोटा था मैं जब इससे प्यार भरी बातें करती थी तो नाक चढ़ाता था क्या नाटक कर रही हैं। मैंने ही तो सिखाया था रिश्तों में जान डालने के लिए प्यार भरा नाटक ज़रूरी है।’’
‘‘हो.......हो........।’’ दोनों फिर मज़ाक उड़ाते हैं, ‘‘अच्छी तरह क्रेडिट लीजिए।’’
मैं अब उन्हें कैसे समझाऊँ उनकी उँगलियों की पोरों में अच्छी कम्पनी के क्रेडिट कार्ड्स चमके इसलिए हर क्षण के ऊपर टँगी मेरी चिन्ताए अपने कितने क्रेडिट कार्ड्स खोती रही है। अब उन्हें कहाँ से ढूँढकर दिखाऊँ?
-00-
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above