अस्पताल के पूरे जनरल वार्ड में सभी मरीजों को अगर कोई अपना–सा लगता था, तो वह थी साँवली–सी साधारण नैन–नक्श वाली
छोटे कद की नर्स सविता।
वह सुबह से रात तक मशीन की तरह इधर से उधर प्रत्येक बिस्तर पर लेटे मरीज की सेवा में लगी रहती। कब किसको दवा देनी है, किसको इंजेक्शन लगना है, किसको क्या खिलाना है, उसको मानो रटा रहता। कभी डाँटती–फटकारती। लेकिन उसकी डाँट में भी प्यार होता। दुखी मरीज को तो वह हँसाकर ही छोड़ती। परंतु एक सुबह जब सविता नहीं आई, तो सब मरीज बेचैन हो गए। शालू और सोनू ने तो उसके बिना दवा खाने से भी इनकार कर दिया और दवा सविता के हाथ से ही खाने की जिद करने लगे। नई नर्स झिड़की देकर बड़बड़ाती हुई चली गई ‘मत खाओ, मरो। मुझे क्या।’ सब परेशान थे कि आखिर क्या बात है। सविता नर्स क्यों नहीं आई। वह तो कभी छुट्टी भी नहीं लेती थी। क्या वह बीमार हो गई? रहीम चाचा ने नई नर्स से पूछा,तो उसने जवाब दिया ‘मुझे क्या पता? मेरी डयूटी इधर लग गई, तो मैं इधर आ गई।’ इसी प्रकार दो दिन, तीन दिन और चार दिन बीत गए। अब तो रहीम चाचा से नहीं रहा गया और वे बिस्तर से उठकर बड़े डॉक्टर के ऑफिस में जा पहुँचे और उनसे सविता के बार में पूछा। डॉक्टर साहब सविता का नाम सुनते ही चिंघाड़ उठे। क्या सविता–सविता लगा रखा है। उसकी छुट्टी कर दी है हमने। वो काम धाम तो करती नहीं थी। उसे रखकर क्या करते? यह सुनकर चाचा तिलमिला उठे और बोले- नहीं–नहीं साहब वह तो देवी है देवी। सब मरीजों की खूब सेवा करती थी और सबका ध्यान रखती थी। डॉक्टर साहब आग बबूला हो उठे और बोले अरे चलो तुम अपने बिस्तर में। बड़े आए देवी–देवी करने वाले। चलो भागो यहाँ से। रहीम चाचा मुँह लटकाए ऑॅफिस से बाहर चले आए और अपने वार्ड की तरफ चल पड़े। तभी सामने से, वार्डब्वाय हरि ने पूछ लिया कि क्या बात है, रहीम चाचा?
“ कुछ नहीं भाई मैं तो डॉक्टर साहब से ये पूछने गया था कि सविता क्यों नहीं आ रही हैं? मुझे डॉक्टर साहब ने डाँट दिया।”
तब हरि बोला, अरे चाचा, तुम्हें नहीं मालूम उसकी तो छुट्टी कर दी गई।
हरि ने आहिस्ता से कहा, मरीजों की सेवा तो करती थी चाचा, परंतु उसने डॉक्टर साहब की सेवा करने से इनकार जो कर दिया।”
चाचा गर्दन झुकाए हुए वार्ड की तरफ चल पड़े।
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