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नियति
भूरे बादल की गोद में बिजली मचली। आगे निकली। धरती की ओर बढ़ी ही थी कि बादल ने टोक दिया, ‘‘कहाँ चली?’’
नीचे एक नन्हीं तितली फूलों पर मँडरा रही थी। तभी एक गौरैया उस पर झपटी और बड़ी बेरहमी से उसको चबाने लगी।
‘‘उस अन्यायी गौरैया को सब सिखाने।’’ बिजली ने संकेत से बताया। इसके बाद बादल की प्रतिक्रिया जाने बिना ही वह धरती की ओर बढ़ जाना चाहती थी कि अचानक चीख पड़ी। कहने लगी––
‘‘बादल दादा....गजब हो गया। गौरैया पेड़ की डाल पर चुपचाप बैठी थी कि एक बाज उस पर झपटा....। बेचारी गौरैया....तितली को ढंग से चबा भी न पाई थी कि बाज के चंगुल में फँसकर अपनी जान गँवा बैठी।’’
बादल चुप रहा। एक रहस्यमयी मुस्कान उसके होठों पर खेलती रही। उधर बिजली का क्रोध निरंतर बढ़ता हो जा रहा था।
‘‘मैं इस अत्याचारी बाज को छोड़ूंगी नहीं....।’’ वह गुस्से से बोली। अचानक एक ग्लानिबोध उसके स्वर में उतर आया,
‘‘हाय! अभी तक कितनी गलत थी मैं...जो गौरैया को अपराधी समझे थी। गौरैया से बड़ा अपराधी तो यह बाज है। अच्छा हुआ जो समय रहते मैं सच्चाई जान गई। वरना मासूम गौरैया ही मेरे कोप का निशाना बनती।’’
बादल अब भी मुस्कुरा रहा था। बिजली कुछ और आगे बढ़ी। तभी उसके कानों में हल्की–सी आवाज आई। उसने नीचे झाँककर देखा। बाज जमीन पर पड़ा तड़प रहा था। उसके निकट ही एक बंदूकधारी सिपाही खड़ा था।
‘‘उफ्फ! यह शिकारी तो बड़ा निर्दय है। गौरैया ने तितली को मारा; क्योंकि वह भूखी थी। बाज ने गौरैया को मारा....इसके लिए बाज की भूख ने उसे उकसाया होगा। अगर ये दोनों अपनी–अपनी भूख का कहा न मानते तो संभव था कि इनकी भूख ही इन्हें खा जाती। मगर यह शिकारी...इसने तो सिर्फ़ शौक के लिए बाज को निशाना बनाया! यह किसी कसाई से कम नहीं है। मैं इसे छोडूँगी नहीं...इस पर गिरने से धरती का कुछ बोझ तो घटेगा।’’ सोचते हुए बिजली का चेहरा गुस्से से तमतमाने लगा। वह तेजी से आगे बढ़ी। बिजली के गुस्से और गर्जना से बादल गड़गड़ाने लगे। नन्हीं बूँदें धरती का आँचल भिगोने लगीं। खुद को बारिश से बचाने के लिए शिकारी भागा और गरीब किसान की झोपड़ी में घुस गया।
बुद्धिजीवियों के समान बिजली भी दुराग्रही थी। अपने फैसले की समीक्षा करना वह जानती न थी। शिकारी का पीछा करते–करते वह झोपड़ी पर गिरी। शिकारी के साथ–साथ किसान और उसका परिवार तथा झोपड़ी निमिष में खाक में मिल गए।
कानून की तरह बिजली को भी तसल्ली थी कि उसने न्याय किया है।
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