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पेड़
मेरी खिड़की से एक हराभरा पेड़ नजर आता है। अब चूँकि महानगर में रहता हूँ अतः उसे हरे भरे वृक्ष को देखकर ही वानप्रस्थ का आनंद लेना पड़ता है।
एक दिन जब ऑफिस से लौटकर खिड़की से झाँकने लगा तो धक् से रह गया। अरे, वृक्ष कहाँ चला गया? बेटी से पूछा। उसने रूआँसी होकर कहा, ‘पापा, गड़रियों ने उसे काटकर गिरा दिया। दिन भर डालियाँ काटते रहे और अब तना ही उड़ा दिया। बस, वह खूँटे जैसा ठूँठ बचा है ।’
शाम को बेटे ने कहा, ‘पापाजी, अब कौए कहाँ रहेंगे? उनके अंडे बच्चे कहाँ गए? पत्नी ने कहा, खूब जामुन खिलाए उस पेड़ ने। काटने वाले को सजा क्यों नहीं दिलवाते।
अब मैं क्या जवाब दूँ? मुझे तो लग रहा था, जैसे मेरा एक बाजू ही कट गया हो और उसकी जगह एक ठूँठ लटका हो।
रात को अचानक मेरी नींद खुली। लगा, सामने की छत से कोई कूदा है। खिड़की खोल कर देखा तो आँखों पर विश्वास नहीं हुआ। एक बन्दर हमेशा की आदत के अनुसार नीचे जामुन का पेड़ मानकर छत से कूदा था, लेकिन ठूठ से टकरा कर धड़ाम से चट्टान पर गिर पड़ा था और तरबूज की तरह उसकी खोपड़ी फट गई थी।
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