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लघुकथाएँ - देश - हरि मृदुल
माँ के आँसू
यह उसकी अपनी माँ से अंतिम मुलाकात थी, हालांकि तब उसे इस बात का इल्म नहीं था। वह शहर लौटते समय माँ से विदाई ले रहा था, तो माँ फूट-फूटकर रो पड़ी थी। वह लगाता रोए जा रही थी। उसे थोड़ा आश्चर्य हुआ था कि माँ इतना तो कभी नहीं रोई। वह कुछ समझ नहीं पाया। हाँ, उसने यह जरूर किया कि जेब से रूमाल निकाला और माँ के आँसू पोंछने लगा। पूरा रूमाल आँसुओं से तर हो गया था।
माँ अभी भी रोए जा रही थी।
नौकरी का सवाल था। उसे किसी भी हालत में शहर लौटना था। माँ के आँसू उसे नहीं रोक सके। अलबत्ता उसने माँ के आँसुओं से भीगा रूमाल अपनी जेब में डाल लिया था।
शहर पहुँचते ही माँ के चल बसने की खबर आ गई। उसने जेब से रूमाल निकाला, वह अभी तक गीला था। न जाने क्यों, उसने यह रूमाल अलमारी में सुरक्षित रख दिया।
आज काफी समय बाद उससे मेरी मुलाकात हुई है। बातचीत के दौरान उसने बताया कि माँ के आँसुओंवाला यह रूमाल अभी तक उतना ही गीला है।
कोई और होता, तो उसे इस बात पर जरूर आश्चर्य होता, लेकिन मुझे कतई नहीं हुआ है।
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