आज मिसेज बाधवा की नींद सुबह काफी देने होने के बाद भी पूरी नहीं हो रही थी। कॉल बेल की आवाज से सिर में दर्द होने लगा था। देर रात चली रेन डाँस पार्टी की थकान पूरी तरह उतरी नहीं थी। आँखों को मलते हुए दरवाजों को खोला। नौकरानी कांताबाई ने तेजी के साथ प्रवेश किया–
‘‘बीवी जी, आज आप बहुत देर तक सो रही है।....तबियत तो ठीक है?’’
‘‘हाँ ठीक है,.....दरअसल कल रात क्लब की ओर से रेन डाँस का आयोजन ताज होटल में किया गया था। रात को वापसी में बहुत देर हो गई।’’
‘‘बीवी जी, उसमें क्या हुआ...?’’
मिसेज बाधवा बात करने के मूड में नहीं थी। लेकिन कांताबाई को जानने की उत्सुकता ज्यादा थी।
‘‘रेन डाँस जी....कल रात हम भी अपने आदमी के साथ रात भर बरसते पानी में नाचते रहे। हम लोगन का सारा सामान इधर–उधर रखते सबेरा हो गया। खोली वाले सेठ से पहले कहा था। बरसात के आवन से पहले छत बनवा देव। पानी बहुत आवत है। लेकिन वह सुनत ही नहीं.....।’’
इतना कहते हुए कांताबाई किचन में जाकर बर्तन साफ करने लगी।
मिसेज बाधवा कांताबाई के रेन डाँस के मतलब की समझ के विषय में सोचते–सोचते वापस बेड में कब आ गई। उसे पता ही नहीं चला।
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