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लघुकथाएँ - देश - रत्ना मिश्र
लड़की
त्यौहार के मौके पर, खचाखच भरी बस में महिला यात्री केवल दो ही थीं। एक लड़़की, एक अधेड़ उम्र के यात्री के साथ बैठी थी और उसके अभद्र और असंयत व्यवहार पर खीझ रही थी। ठीक उसी के पीछे वाली सीट पर एक महिला अपने बेटे के साथ बैठी थी।
बस झटके से रूकी तो लड़की ने तल्ख होकर सहयात्री से कहा ‘‘आप सीधे बैठिए ना’’ आगे वाले यात्री पीछे देखने लगे। उन्हें लड़की पर भरपूर नजर डालने का मौका मिल गया था। माँ–बेटा बहुत देर से लड़की की परेशानी भाँप रहे थे। अचानक लड़का उठ खड़ा हुआ। ‘‘आप यहाँ मेरी सीट पर बैठ जाइए’’। लड़की ने तपाक से सीट बदल ली।
लड़के ने उस यात्री से पूछा, ‘‘आप कहाँ जा रहे हैं?’’ ‘‘बहन से राखी बँधवाने घर जा रहा हूँ। वह इलाहाबाद में पढ़ती है। वह भी इस समय बस में होगी।’’
लड़की अनायास जोर से बोल पड़ी। ‘‘और उसने भी अभी–अभी सीट बदली होगी।’’
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