वैसे तो उसकी शादी के लिए इक्के–दुक्के प्रस्ताव उसकी पढ़ाई के दौरान भी आते रहते थे लेकिन समाप्त करके सरकारी नौकरी ज्वाइन करते ही वैवाहिक प्रस्तावों की जैसे बाढ़ सी आ गई। आए दिन कोई न कोई लड़की वाला शादी का प्रस्ताव लेकर पहुंचा ही रहता था। चूंकि उसकी जाति दहेज के प्रचलन को लेकर समान में काफी बदनाम थी और अपनी बहनों की शादी में भी उसे इस समस्या का सामना करना पड़ा था अत: मेडिकल कालेज में पढ़ाई के समय ही उसने यह निश्चय कर रखा था कि अपनी शादी में वह एक पैसा भी दहेज नहीं लेगा ओर बगैर दान–दहेज के शादी करके समाज के सम्मुख एक आदर्श स्थापित करेगा।
उस दिन कानपुर के एक व्यापारी सज्जन अपनी बेटी की शादी का प्रस्ताव लेकर आए थेे। उन्होंने जैसे ही लेन–देन की बात प्रारम्भ की उसने स्पष्ट कह दिय, ‘‘ऐसा है सेठ जी कि दहेज के नाम पर मुझे एक भी पैसा नहीं लेना है।’’
‘‘अरे! आप भी क्या मजाक करते हैं डाक्टर साहब....एक लाख नकद और घर गृहस्थी का सारा सामान देने के लिए तो हम खुद ही तैयार है....वैसे अगर आप की कोई विशेष इच्छा हो तो बताइए...हम उसे भी पूरा करने की कोशिश करेंगे...’’
‘‘अरे वाह! भला यह कैसे हो सकता है....! हम कोई भिखमंगे तो है नहीं कि अपनी लड़की ऐसे ही विदा कर देंगे..आखिर समाज में हमारी भी अपनी लड़की ऐसे ही विदा करेंगे...आखिर समाज में हमारी भी अपनी इज्जत है....अपनी जग हँसाई थोड़े न करानी है हमें.....’’ सेठ जी ने कहा और लौट गए।
बनारस वाले ठकेदार नेतो आते ही मारूति कार देने की पेशकश कर दी। जब उसने अपने दहेज न लेने के संकल्प के बारे में बताया तो ठेकेदार महोदय ठठाकर हँस पड़े और बोले, ‘‘भई! हमारी तो तीन बेटों के बीच इकलौती बेटी है। हम तो खूब धूम–धाम से करेंगे उसकी शादी। अगर आप ने समाज–सुधार का ठेका लिया है तो किसी गरीब,असहाय का उद्धार कीजिए...’’
सेठजी तथा ठेकेदार महोदय के व्यवहार से वह इतना खिन्न हुआ कि कई लड़की वालों को उसने बात किए बगैर ही लौटा दिया ;लेकिन जब प्रतापगढ़ वाले गुप्ता जी पीछे ही पड़ गए तो उनसे बात करनी पड़ी। उसने प्रारम्भ में ही कह दिया, ‘‘देखिए श्रीमानजी. मुझे न तो पैसा चाहिए और न ही दहेज का कोई सामान। बस लड़की चाहिए, वह भी सिर्फ़ पहने हुए कपड़ों में....’’
‘‘क्या सच?’’ गुप्ता जी चौंक पड़े।
‘‘जी हाँ । बिल्कुल सच। आप सोच लीजिए। यदि आपको मेरी शर्त स्वीकार हो तो आगे बात की जाए।’’ उसने कहा और चाय,नाश्ते का प्रबन्धकरने के लिए अन्दर चला गया।
एकांत पाकर गुप्ता जी अपने साथ आए व्यक्ति से ,जो संभवत: उनका भाई था बोले, ‘‘भाई! मुझे तो दाल में कुछ काला नजर आता है....या तो खुद लड़के में कोई खोट है या फिर इसके परिवार में कोई गड़बड़ी है....वरना बगैर दान–दहेज के कोई शादी करता है भला।’’
‘‘आप ठीक कह रहे हैं भाई साहब.....मुझको भी कुछ ऐसा ही लग रहा है...लगता है किसी वजह से इसकी शादी नहीं हो पा रही है तभी तो झटपट शादी की बात के लिए तैयार हो रहा है.....’’ गुप्ता जी ने भाई से कहा।
गुप्ता जी के मन में खटका हो गया। वे चाय पी कर बगैर बात किए ही लौट गए।
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