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लघुकथाएँ - देश - साबिर हुसैन

रोटी

जब विदेशियों ने तट पर पैर रखा था तभी उसे तथा उसके साथियों को अपनी सूखी रोटियाँ  बचाने की चिंता सवार हो गई थी। तब तट रक्षकों ने आश्वस्त करते हुए कहा ‘‘आप लोग घबराएँ  नहीं, इनके आने से यहाँ  खुशहाली आएगी।’’
‘‘हमारे बाबा कहते थे ऐसे ही खुशहाली का सपना बेचने वाले सौदागरों ने हमारे पूर्वजों को गुलाम बना कर रखा था,’’’ आशंका उभरी।
‘‘यह पुराने जमाने की बात है,’’ तटरक्षकों के प्रमुख ने कहा। वे निश्चिंत होकर रोटियों की फसल उगाने लगे। रोटियों की फसल तैयार होने पर उन्होंने देखा सूखी रोटियों की फसल को विदेशियों ने घी चुपड़ी रोटी में बदल दिया था लेकिन वे उसके हाथों की पहुँच से बहुत ऊपर थी। बहुत उछल–कूद करने पर किसी–किसी के हाथ में एक रोटी आ गई थी जब कि भूख मिटाने के लिए उन्हें कई रोटियों की आवश्यकता थी।
‘‘अब तो हमारी सूखी रोटियाँ  भी चली गई।’’ वे बोले लेकिन उन्हें कोई उत्तर नहीं मिला।
तटरक्षकों के मुंह चुपड़ी रोटियों से बंद थे।
समांतर


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