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लघुकथाएँ - देश - राजकुमार गौतम
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खरा बलिदान
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'नहीं, सुनी! वह सब मत करो जो करने जा रही हो!'
'सुनी' अर्थात सुनीता ने देखा कि तीन दिनों पूर्व सरहद पर हुआ शहीद उसका
पीटीआई गुलाब सिंह राठौर, सेना की मध्यम श्रेणीवाली अफसरी ड्रेस में सीना
ताने खड़ा है. सशरीर . साक्षात्.विश्वसनीय.
'अरे तू...आप !....कल ही तो गार्ड ऑव ऑनर से चिता में अग्नि..' सुनीता की
आँखें रोमांच, ख़ुशी, आश्चर्य और भय से अनाप- शनाप आकार ग्रहण कर रही
थी.
'वक़्त ज़्यादा नहीं है सुनी , मेरी बातें ध्यान से सुनो! 'डेली एक्सप्रेस'
टीवी चैनलवालों के साथ मिलकर तुम जो खेल कल सुबह खेलने जा रही हो,
उसे विराम दो. शत्रुपक्ष से लड़ते हुए मैंने सीने पर गोली खाकर इसलिए
बलिदान नहीं दिया कि मेरे नाम
की पूजा-अर्चना हो ; तुम्हें गैस एजेंसी मिले, मुफ्त का
फ्लैट सरकारी दान-दक्षिणा में मिले; बच्चों की तमाम पढ़ाई
मुफ्त में हो...! मेरी भावनाओं को इन सब थोथी लालसाओं में सीमित न
करो...! बलिदान मेरी व्यक्तिगत पूँजी नहीं, भावी युवा की प्रेरणा का
प्रतिमान हो, प्रसंग हो. इसलिए जो प्राप्य परिवार पेंशन तुम्हें
मिलेगी, उसी पर गुजार करो!' गुलाब सिंह के स्वर में प्रार्थना थी, मनौती
थी, धक-धक धड़कता आत्मा का सुर-संगीत था. सच्चे बलिदान की तान थी.
'मगर... टी वी वाली एंकर तो कह रही थी कि कल सुबह वह लाइव कवरेज
देगी; बहुत कुछ माँग लेने की बात कह रही थी...कि यही मौका है, हाथ से नहीं
जाने दो. शाम तक सरकार-कमांडेंट -कारिंदे सब के सब देवताओं की
तरह प्रकट हो जाएँगे. 'द हीरो ऑफ़ कोल्ड वॉर' शीर्षक से दुनिया के पैंसठ
देशों में सीधा प्रसारण जाएगा. हमें प्लेझर ऑफ़ सैक्रिफाइस मिलेगा. आपके
माला सजे फ़ोटोज़ से घर भर दिया है. कैमरे -लाइट्स -शॉट्स- ड्रेसेस- फोटो के
सामने सुपर इम्पोज़ होता घी का जलता दीया ....सब कुछ तो ओ के है.
प्लीज़, मेरी बात मानो....बच्चों का, मेरा, आपके बूढ़े माँ -बाप ... सबका
भला होगा. ज़िंदा थे, तब तो कभी मेरी एक न सुनी. अब तो मानो.'
बिना पलक झपकाए सुनी हैं तथाकथित विधवा की ये बातें गुलाब
सिंह ने. एक बार फिर से समझाने की कोशिश करता है...'मगर मुझे कुछ भी नहीं
चाहिए सुनी...! कुछ भी !! एक दर्जन गुलाब के फूल भी नहीं !!!
समझो सुनीता, देश की आबरू की तरफ कोई आँख उठाकर भी देखे तो उसे चीर कर रख
देगा हर एक स्वाभिमानी भक्त! ऐसे ही बलिदान की ऑटोमैटिक फायर का
संदेश मैं पूरी दुनिया को देना चाहता हूँ। सरहद पर ड्यूटी देते हुए अनेक
रातों में वर्षों मैंने सोचा है कि अकेले में प्रतिज्ञारत किये गए सच को
जनता ककए बीच जाकर उजागर करना है। सर्वोच्च बलिदान देकर मैंने किसी की ओर
नहीं ताका, मगर आज साड़ी दुनिया मानो मुझे ही देख रही है। मैं किसी
को सम्बोधित नहीं कर रहा हूँ बल्कि हर कोई मुझे सम्बोधित कर रहा है। यह
कितनी बड़ी बात है…!' कहते- कहते गुलाब सिंह की नजर सुनीता के चेहरे
पर पड़ी तो वह धक्क से रह गया! बलिदानी की आत्मा की यह कुत्ता-घसीटी !
उपहास!! ...आक्रमण!!!
सूर्योदय की आभा में डेली एक्सप्रेस चैनल की एंकर ने
है. भड़कती ड्रेस और गहरे मेकअप में उदास चेहरा पहन रखा है। लाइव कवरेज की
बैकग्राउंड में शोकधुन है; राष्ट्रभक्ति के गीतों की मन्द स्वरलहरी है;
उलटी रायफल पर अज्ञात फौजी की टोपी है...सुनीता का हृदयविदारक बयान है--
उसे गर्व है की वह गुलाब सिंह जैसे वीर की विधवा है; फिर यत्नजनित
आंसू हैं. शहीद की सुलगती चिता को कुरेदती एंकर का उकसाना है और विधवा की
अपेक्षाओं की लम्बी-चौड़ी सूची का कण-कण विस्तार है...! एंकर का देश के
प्रथम स्थल से सीधा संवाद स्थापित है; अनेकानेक आश्वाशनों के रॉकेट
हैं...विपक्षी दलों के नेताओं के महासंवाद हैं...विदेशनीति की नई
व्याख्याएँ की जाने लगी हैं...चैनल की टीआरपी का मीटर कंगारू की तरह उछल
रहा है...!
मगर इस सबके बीच कैमरामैन गले-गले तक परेशान है! शहीद के चित्र पर कैमरा
फोकस करता है ,तो वहाँ खाली फोटोफ्रेम दीखता है और कैमरा सुनीता को कवर
करता है तो वह निष्णात विधवा गहरी मुस्कराहट, चुलबुलाहट और तमाम
सुहागचिह्नों से भरी-पूरी दिखाई देती है..! पता नहीं, इस रहस्यमयी
बात की ओर सबका ध्यान कब गया. ध्यान गया भी कि नहीं, ऊपर वाला जाने।
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