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लघुकथाएँ - देश - निर्मला सिंह





 पाप



‘‘मुबारक हो गुप्ता जी,’’
‘‘किस बात की मुबारकवाद दे रहे हैं।’’
‘‘अरे, आप की इस बेटी की सफलता की, जिसने अनेकों लोगों को जीवनदान दिए हैं और एक सफल डॉक्टर बनी है।’’
‘‘जिन्दगी देना और लेना भगवान के हाथ में है। वह तो अपना धर्म व फर्ज करती है।’’ गुप्ता जी बोले।
‘‘लेकिन कई साल पहले आपने इसे जन्म देने के लिए बीवी को मना कर दिया था और गर्भपात करवा के इसे....’’
‘‘बस....’’ कहकर गुप्ताजी शान्त हो गए जैसे साँप सूँघ गया हो।
                                        
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