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लघुकथाएँ - देश - प्रहलाद श्रीमाली    





सर प्राइज़  गिफ्ट



मंत्री जी ने स्पष्ट महसूस किया। साक्षात् महँगाई प्रत्यक्ष भ्रष्टाचार को राखी बाँध रही है।  
  
    ‘‘भैया ! अबके सरप्राइज गिफ्ट क्या है ? जानने के लिए वे कल से उतावले हैं !” मंत्री भाई को राखी बाँधने के बाद बहन ने अधेड़ावस्था के बावजूद ठुनकते हुए कहा ।  
स्नेह और रहस्य भरी मुस्कान के साथ कम पढ़ी–लिखी बनी–ठनी बहना को निहारते हुए मंत्री जी ने एक वजनदार पैकेट थमाया। पिछले साल उन्होंने एक करोड़ का गहना दिया था। इस बार बदले हालात और सँभली–सुधरी मानसिकता वश उन्होंने ‘श्रीमद्भगवतगीता’ की सरल भाषा टीका सहित मोटे अक्षरों वाली प्रति भेंट की है। जो सही मायने में आदर्श सरप्राइज गिफ्ट साबित होगा ! सोचते हुए उनकी मुस्कान तेज हो गई। यह देख बहन के दिल की उमंग- भरी धडकनें भी तेज।

    बहन के जाते ही पीहर जाने के लिए तैयार मंत्रीजी की पत्नी बोली- ‘‘देखें ! इस बार मेरा भारी भरकम ठेकेदार भाई क्या देता है!”- लालच भरे स्वर से लार-सी टपक रही थी ।
कहाँ कसर रह गई ! अब इसे और क्या चाहिए !  चिंतन करते मंत्री जी को पत्नी तृष्णा की जीती जागती मूरत नजर आई। तृष्णा और वासना ही तो भ्रष्टाचार की संगिनी हैं। पत्नी के साथ ही उन्हें अपनी गर्ल  फ़्रेण्ड का खयाल आया। जो हफ्ते भर से मचल रही थी। रक्षा बंधन के उपलक्ष्य में अपने मुँह बोले भाई के हित में कुछ करने के लिए।

‘‘पापा देखिए तो ! भैया ने मुझे रक्षा बंधन पर क्या दिया है!” पुलकते हुए आकर किशोरी बिटिया ने कहा तो मंत्रीजी तीव्र जिज्ञासु हो उठे, ‘‘जल्दी बताओ ! क्या दिया है?”
तभी किशोरावस्था पार कर रहा मंत्री–पुत्र गंभीर मुस्कान के साथ आकर गर्व से बोला, ‘‘दिया नहीं ! इसने मुझसे पक्का वादा लिया है। जो मैंने भी सच्चे दिल से दिया है कि भविष्य में यदि मैं राजनीति में उतरा तो भ्रष्टाचार नहीं, शुद्ध जन सेवा करूँगा!”

    निष्ठा और सिद्धांत कदापि भ्रष्टाचार की संतान नहीं हो सकते ! सोचते हुए भावुक मन और भीगी आँखों के साथ मंत्रीजी के मुखरे पर सुखद आश्चर्य -भरी मुस्कान थी ।

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