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लघुकथाएँ - देश - सूर्यकांत नागर
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नौकरानी
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अरसे
बाद शहर लौटा हूँ। रास्ते में रमण मिल गया। इधर–उधर की बातें होती रहीं।
विदा लेते समय उसने घर आने को कहा तो सहसा मुझे उसके पुराने नौकर की याद आ
गई। बहुत ही नेक,ईमानदार और कर्तव्यनिष्ठ आदमी है वह। जब भी मैं रमण के
यहाँ जाता, बहुत प्रेम से सेवा करता। अत: मैं उसी के बारे में पूछ बैठा,
‘‘दीनू के क्या हाल है?’’
‘‘उसे तो मैंने निकाल दिया’’ -रमण ने बताया।
‘‘पर क्यों? वह तो बड़े काम का आदमी था। घर का सारा काम करता था’’ -आश्चर्य से मैंने पूछा।
‘‘अब उसकी जरूरत नहीं थी। .....शायद तुम्हें पता नहीं, पिछले दिनों मैंने शादी कर ली है।’’
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