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‘कर लो पता अपने काम का, साथ ही उन्हें चेयरमैन बनने की बधाई ही दे आओ,
इसी बहाने।’पत्नी ने आग्रह किया तो भारती चला गया, वरना वह तो कह देता था,
‘देख, गर काम होना होगा तो सरदूल सिंह खुद ही सूचित कर देगा। हर पाँच–चार
दिन के बाद मुलाकात हो ही जाती है।’
तबादलों की राजनीति वह समझता था। कैसे मंत्री ने विभाग सँभालते ही सबसे पहले
तबादलों का ही काम किया। बदली के आर्डर हाथ में पकड़ते ही भारती ने अपनी
हाजरी रिपोर्ट दी और योजना बनाने लगा कि क्या करे? वहाँ रहे। बच्चों को साथ ले
जाए या रोजाना आए–जाए। बच्चों की पढ़ाई के मद्देनज़र आखरी निर्णय यही हुआ कि
अभी शिफ़्ट नहीं करते और ‘कपल केस’के आधर पर एक अर्जी डाल देते हैं।
और तो भारती के वश में कुछ था नहीं। फिर पत्नी के कहने पर एक अर्जी
राजनीतिक साख वाले पड़ोसी, सरदूल सिंह को दे आया था।
सरदूल सिंह घर पर ही मिल गया और भारती को गरमजोशी से मिला। भारती को भी
अच्छा अच्छा लगा। आराम से बैठ, चाय मँगवाकर सरदूल कहने लगा, ‘छोटे भाई!
वह अर्जी मैंने तो उस समय पढ़ी नहीं, वह अर्जी तूने अपनी तरफ से क्यों लिखी, । । ।
माता जी की तरफ से लिखनी थी। ऐसे कर नई अर्जी लिख। माता जी की तरफ से
लिख! कि मैं एक बूढ़ी औरत हूँ। अक्सर बीमार रहती हूँ । मेरी बहू भी नौकरी करती
है, बच्चे छोटे हैं, देर–सवेर दवाई की जरूरत पड़ती है, मेरे बेटे के पास रहने से मैं। । ।
। कुछ इस तरह से बात बना। बाकी तू समझदार है। मैंने परसों फिर जाना है, मंत्री से
भी मुलाकात होगी।’
उसने आत्मीयता दिखाते हुए कहा। भारती ने सिर हिलाया, हाथ मिलाया और घर की
तरफ हो गया। माँ की तरफ से अर्जी लिखी जाए। माँ को मेरी जरूरत है। । । माँ बीमार
रहती है, कमाल! बताओ अच्छी–भली माँ को यूँ ही बीमार कर दूँ। सुबह उठ बच्चों
को स्कूल का नाश्ता बना कर देती है। हम दोनों को तो ड्यूटी पर जाने की अफरा–
तफरी पड़ी होती है। दोपहर को आने पर रोटी पकी हुई मिलती हैं। मैं तो कई बार
कह चुका हूँ कि माँ बर्तन साफ करने के लिए नौकरानी रख लेते हैं, माँ ने वह नहीं
रखने दी। कहने लगी, मैं सारा दिन बेकार क्या करती हूं।। । । । कहता है लिख दे, बेटे
का घर में रहना जरूरी है। मेरी बीमारी के कारण, मुझे इसकी जरूरत है। पूछे कोई
इससे, माँ की हमें जरूरत है कि। । । । नहीं नहीं, माँ की तरफ से नहीं लिखी जा
सकती अर्जी।’
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