पहली रचना ‘दर्पण है और रचनाकार अमरनाथ चौधरी ‘अब्ज’। रचना बड़ी छोटी है–प्राय: सूत्रात्मक–लघुकथा की सामान्य काया से भी छोटी, निहायत संक्षिप्त। सिर्फ़ दो ईटों का संवाद है, एक प्रश्न, एक प्रश्न एक उत्तर–बस रचना पूरी। पर इस संक्षिप्ति में ही पूरी बात कह दी गई है, पूरा कथ्य समावेशित कर दिया गया है, पूरा भाव समा गया है। भाव गहरा है, सार्वभौमिक–सार्वकालिक है। रचना का यह प्रधान गुण है–शाश्वतता का उपस्थापन–जीवन के सारभूत तत्वों का संस्थापन–इस मानी में अपने नपे–तुले शब्दों, अपनी सटीक संवादशैली, अपनी शाश्वत भाव धारा व सहज संप्रेषणीयता के कारण यह रचना आकर्षित करती है, एक विशिष्ट पद की अधिकारिणी बन जाती है, त्याग–तपस्या की अंधकुक्षि से ही दृश्यमान ऐश्वर्य के फूल खिलते हैं, वृक्ष अदृश्य धरती से ही रसदोहन कर अमृत फल–फूल देता है–नींव की अदृश्य ईंट के बल पर ही भव्य अट्टालिका खड़ी होती है, उसी के बल पर ऊँची मीनारें और गुम्बदें शोभा पाती हैं, इतराती–इठलाती हैं इस बेहतरीन कथा को यदि शिल्प की कुछ और अधिक स्थिर बनावट व सृजनात्मक ऊर्जा–प्रेरणा का कुछ गहनतर गंभीरता संस्पर्श प्राप्त होता तो रचना प्रथम कोटि की हो सकती थी पर अपनी वर्तमान स्थिति में वह दोयम दर्ज़े की ही रह गई।