सत्यनारायण नाटे की लघुकथा ‘अपना देश’ गरीबी और दुर्गन्ध का एक प्रभावशाली चित्र उपस्थित करती है। यह बेबसी व लाचारी का सशक्त चित्रण प्रस्तुत करती है। एक भिखमंगे के माध्यम से रचनाकार ने पूरे देश के कलेवर को रोगमय, व्रणमय दिखाया है–दुर्गन्धभरा, पीव देता। बीमारी लाइलाज है जबतक शरीर चले तब तक चले–असहायावस्था के दारुण्य का संवेद्य चित्रण स्थिति को, कथ्य को, भाव को सुसंप्रेष्य बना देता है। इस लघुकथा के शीर्षक से बहुतों का मतभेद हो सकता है –आखिरकार यह शीर्षक देकर रचनाकार ने क्या कहना चाहा है, बहुत स्पष्ट नहीं होता। बात है भिखमंगे की और शीर्षक है ‘अपना देश’ । कहीं भिखमंगा ही तो अपना देश नहीं है? क्या भिखमंगा सांकेतिक अर्थ देता है? बात बहुत कुछ समझ में नहीं आती। सृजनात्मक दृष्टि से रचना बहुत प्रभावशाली नहीं बन पाती। इसलिए इसे द्वितीय कोटि में ही रखा जा सकता है।