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अध्ययन-कक्ष - पोस्टर
पोस्टर
अखिलेन्द्र पाल सिंह

अखिलेन्द्र पाल सिंह की ‘पोस्टर’ शीर्षक लघुकथा एक गरीब बंधुआ मजदूर की और एक ज़मीदार या क्रुद्ध सामंत की मानसिकता को बड़े जीवन्त, सशक्त व प्रभावशाली ढंग से प्रस्तुत करती है। बीस सूत्री कार्यक्रम के पोस्टर को देखकर मज़दूर के दिमाग में भावी स्वर्णिम सपनों के द्वार अचानक खुल जाते हैं–वह सपनों से आकान्त स्वप्नलोक में विचरण करता अपने वर्तमान दु:ख–दैन्य–दारिद्रय को पूर्णत: बिसर जाता है जब तक कि सामंतवादी आक्रोश का क्रूर डंडा उसके सर पर दनादन गिरकर उसे लहूलुहान नहीं कर देता। उसके सपने चूर–चूर हो जाते हैं–उसका कल्पित घरौंदा धराशाई हो जाता है, उसका काल्पनिक स्वर्ग ध्वस्त हो जाता है। स्वर्ग के फूलों के सिंहासन पर समासीन मज़बूर नरक के खौलते तेल के कड़ाह में डाल दिया जाता है–उसका अंतर हाहाकार–चीत्कार से भर उठता है, उसके मन में उठे अनगिनत प्रश्न अनुत्तरित रह जाते हैं, भविष्य का दरवाजा बंद–सा लगता है, वर्तमान की कष्टकारा से मुक्ति असंभव लगती है और वह अपने वर्तमान से, अपनी नियति से, स्थिति–परिस्थिति से समझौता कर पुन: अपनी बेबसी, लाचारी का यातना भरा अभिशप्त जीवन–क्रम चुपचाप दूर बिखरे कथित–विपन्न मन से शुरू कर देता है। मजदूर के अंतर में उठे भावों के ज्वारभाटे को, उसकी क्षणिक स्वर्णिम स्वप्निल स्वर्गिक अनुभूति और फिर उसकी स्थायी लम्बायमान नारकीय जीवन की यातना को, उसकी पीड़ा–कथा को रचनाकार ने बड़े मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया है। रचना काफी अच्छी बन पड़ी है।
सुकेश साहनी, अखिलेन्द्र पाल सिंह, सुबोध कुमार गोविल की लघुकथाओं को देखकर लगता है कि श्रेष्ठ सृजनात्मकता के संप्रभाव में पड़कर लघुकथा भी सर्जना के समुत्कर्ष को सहज ही सम्प्राप्त कर लेती है और दीर्घायु, प्रभावकारी एवं श्रेष्ठ रचना सुखदायी बन जाती है।

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