रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ की लघुकथा ‘फिसलन’ वर्तमान मानव जीवन के चारित्रिक विघटन व विखंडन की कहानी बड़े ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत करती है। हम जो कई स्तरों पर जीने के लिए विवश हो गए हैं या कहा जाए कि हम या तो अपनी आंतरिक कमज़ोरी या परिस्थिति के दबाव से जो विभिन्न धरातलों पर जीने के अभ्यासी,Double think ,double do –उसी का मर्मस्पर्शी अंकन इस लघुकथा में प्रस्तुत है। शराब की बुराई पर भीषण भाषण देने वाला,शराब की हानियों पर लंबी चौड़ी वक्तृता देने वाला, शराबखोरी के दुष्प्रभावों पर बड़ा ही प्रभावशाली प्रवचन देने वाला व्यक्तित्व (महेश तिवारी) स्वयं शराब पीकर नशे में चूर अपना होश हवास खोकर नाली में कर्दम कीच में लोट रहा है–मंच पर शराबखोरी के विरुद्ध ज़ोरदार भाषण और मंच के बाद स्वयं शराबखोरी। क्या ही विडंबना, विसंगति, विद्रूपता? इस विडंबना, इस दारुण स्थिति को रचनाकार ने बड़ी जीवंत–सशक्त वाणी दी है जिससे यह विडंबनात्मक स्थिति, उसकी दारुणता जीवंत हो पाठक के मनमानस की अभिभूत कर देते हैं और अपना अमिट प्रभाव छोड़ जाते हैं। रचना प्रथम कोटि की है।