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अध्ययन-कक्ष - मेरी का प्रतीक
मेरी का प्रतीक
जमाल अहमद वस्तवी

मेरी का प्रतीक
‘मेरी का प्रतीक’ शीर्षक से लिखी जमाल अहमद वस्तवी की लघुकथा गरीबों के जीवन की दर्दनाक दास्तान प्रस्तुत करती है, दारिद्र्यपूर्ण साधनहीनता का मर्मवेधी कारुणिक आख्यान। गरीबी में ही उदारता के सुमन खिलते हैं, विपन्न्ता में ही मानवीय भावों के सुवास प्रस्फुटित होते हैं और साधन–सम्पन्नता व समृद्धि में स्वार्थपरायणता के, संकीर्णता के कीड़े रेंगने लगते हैं, स्वार्थपरता की जोंकें पैदा हो जाती हैं। सम्पन्नता और विपन्नता के इस विषम–विरोधी भावप्रभाव को, संस्कार और मानसिकता को रचनाकार ने बड़े कौशल से, बड़ी सृजनात्मक समृद्धि के साथ प्रस्तुत किया है।
दूसरों की सेवा–सहायता करनेवाली गरीब औरत को जब स्वयं सहायता की ज़रूरत पड़ती है तो सभी कन्नी काट लेते हैं–वह निरी अकेली, निपट असहाय रह जाती है–अकेले अपनी विकट स्थिति का अपार धीरता के साथ सामना करती है–अपार क्षमाशीलता के साथ। एक प्रकार से मातृत्व–भावना से ओतप्रोत होकर नारी जाति को ही मेरी के रूप में देखने वाली रचनाकार की यह दृष्टि वास्तव में बड़ी सूक्ष्म, बड़ी उदार है–वह मेरी जो मसीहा की माँ थी, वह मेरी जिसकी कुक्षि से मानवता का संरक्षक, इंसानियत का मुक्तिदाता पैदा हुआ था।
मूल्यवान गंभीर कथ्य और सुन्दर सटीक साहित्यिक शीर्षक इस लघुकथा को साहित्य में स्थायी स्थान दिलाने के लिए विवश करते हैं। इस तरह की लघुकथाएँ यदि लिखी जाने लगी तो निश्चय ही लघुकथा के आलोचकों का मुँह बंद हो जाएगा और यह विधा एक सशक्त विधा के रूप में गौरवमान, पद–प्रतिष्ठा अर्जित कर सकेगी। रचना प्रथम कोटि में उच्च पद की अधिकारिणी है।

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