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अध्ययन-कक्ष - संरक्षक
संरक्षक
कुलदीप जैन

कुलदीप जैन की लघुकथा ‘सरंक्षक’ भी बड़ी सशक्त रचना है–स्थायी सृजानात्मक सौरभ से सुरभित समृद्ध। इस लघुकथा में प्यार व सहानुभूति की संजीवनी शक्ति का मार्मिक रहस्योद्घाटन किया गया है। निराश हताश जीवन के घटाटोप घनघोर अंधकार में प्यार–सहानुभूति के मात्र दो शब्द या उसकी मौन मुखर अभिव्यक्ति प्रकाश की ज्योतिष्मता विद्युन्नाभा की तरह तेजोद्दीप्त व भास्वर हो जाती है। जीवन में टूटे हुए सब तरह से बिखरे–विखंडित निराश–हताश प्राणी को प्यार–आत्मीयता–सहानुभूति का स्वल्प संस्पर्श एक सुप्रभावी, एक जीवनदायी रसरसायन , एक स्वास्थ्यवर्धक , एक कष्टहर क्लांतिहर वेदना निग्रहरस। कम से कम शब्दों में पूरी पृष्ठभूमि का, पूरी मानसिकता व पूरी स्थिति–परिस्थिति–मन:स्थिति का सुप्रभावी सुअंकन सर्जना की सिद्धि है, रचनाकार का वैभव वैशिष्ट्य है–बधाई। रचना शाश्वतभाव से, मानवगरिमा से, मानवजीवन की खुशबू से ओतप्रोत है।

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