राजकुमार ‘निजात’ की लघुकथा ‘स्टॉपेज’ मानवीय संवेदनहीनता व भावशून्यता की एक प्रखर झांकी प्रस्तुत करती है। समाज की आँखों में विपन्न वृद्ध साधनहीन का कोई महत्त्व नहीं, भलमनसाहत की कोई पूछ नहीं। हानि पहुँचाने की सामथ्र्य से भावना रखने वाले सम्पन्न युवक सर्वाधिक महत्त्व के अधिकारी बन जाते हैं। विवश लाचार बूढ़ा बार–बार भिन्नाता रहा पर बस नहीं रुकी–ड्राइवर को ज़रा भी दया या करुणा नहीं आई पर जवान सम्पन्न लोगों के संकेत मात्र से बस रुक गई। ड्राइवर उनके महत्त्व से अभिभूत था। इस दर्दनाक भावनाहीन स्थिति व मानसिकता को किंचित् प्रभावशाली ढंग से बेनकाब किया गया है इस लघुकथा में। पाठकों के हृदय में इन लाचारों के प्रति, असहायों–विपन्नों के प्रति एक हमदर्दी का भाव जागृत किया गया है।
हालाँकि रचना बहुत उच्च कोटि की नहीं बन पाई है फिर भी सफल, सार्थक एवं सोद्देश्य है। तात्कालिकता से ग्रसित न होकर साहित्य के सनातन तत्वों से सृजित–निर्मित है यह। इसकी अपील भी शाश्वत मानवता की है। कोटि द्वितीय।