गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
अध्ययन-कक्ष - प्रायश्चित
प्रायश्चित
महेन्द्र सिंह ‘उत्साही’

महेन्द्र सिंह ‘उत्साही’ की लघुकथा ‘प्रायश्चित’ में रचनाकार ने अपनी स्वाभाविक संवेदनशीलता व सूक्ष्म ग्राहिका शक्ति से मानव जीवन के एक सहज मनोहारी रूप का, एक दिव्यभावापन्न छवि–छटा का कौशलपूर्ण अंकन करना चाहा है। प्रौढ़ पिता बराबर असहज हो जाता है पर बालक बराबर सहज ही बना रहता है उसमें यदि कुछ छल–छद्म, आक्रोश–रोष, आवेश–आवेग आता है तो पर्वती नदी की बाढ़ के पानी की तरह तुरन्त बह जाता है और बालक पुन: अपने सहज स्वभाव में संकलित हो, सहज स्नेह की प्रेमिल मूर्ति बन जाता है। शिशुत्व में संतत्व समाहित है या फिर मातृत्व! इसीलिए बालक देवदूत होता है और उसकी सृष्टि,स्वर्ग–सृष्टि। प्रस्तुत रचना में प्रौढ़ पिता क्रोधांध हो अपने बालक–पुत्र को खूब पीटता हे पर वही बालक कुछ ही क्षणों बाद अपने समस्त निश्छल प्रेम–प्रवाह के साथ, अपनी समस्त स्नेह–सुधा के लिए पिता के पास पहुँचता है और उन्हें विस्मय–विमुग्ध, भावविभोर कर उनकी अन्तर्सत्ता में एक गहरी क्रान्ति का, एक दिव्य रूपातंरण का माध्यम, मसीहा बन जाता है। पिता बालक पुत्र के सहज स्नेह की अविरल अखंड सुधा–धार में स्नान कर कृतकृत्य हो जाता है–स्नेहाप्लावित, स्नेहाक्रान्त, स्नेहाभिभूत हो बच्चे को गले लगा लेता है और उस पर अपना स्नेह–वर्षण करने लगता है। शिशु की निश्छल स्नेह धार ने पिता को स्नेह–सक्रिय बना दिया है। बालक पुत्र के इस स्नेहाप्लावन को तथा प्रौढ़ पिता पर पड़े उसके अमृत प्रभाव को रचनाकार ने बड़ी कुशलता से आँका है। मानव जीवन के इस सहज शाश्वत सत्य को पुन एक बार परिचित–प्रतिष्ठित कराने के लिए रचनाकार हमारी बधाई का हकदार तो हो ही जाता है, अनन्त मानव जीवन से संबंधित ऐसे शाश्वत विषय लघुकथा की सम्पूर्ण सृजनात्मक क्षमता को भी सिद्ध कर देते हैं। रचना प्रथम कोटि की है।

°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above