चित्रा मुद्गल की लघुकथा ‘बोहनी’ एक ऐसी स्थिति का अंकन करती है जिसमें कोई दानकर्ता या दानकर्तृ किसी भिखारी के लिए विशेष रूप से सुखदायी हो जाता है। दान की वह जो शुरूआत करता है वह दिन भर के लिए फलदायी सिद्ध होती है। एक भिखारी और एक दाता के संवाद क्रम में यही तथ्य उभारा गया है।
सब मिलाकर रचना कोई विशिष्ट नहीं बन पाई है। रचना कच्ची लगती है–रस परिपाक नहीं हो पाया है–अत: इसमें सृजनात्मक रस वैभव का सर्वथा अभाव लगता है। रचना बिलकुल साधारण लगती है और बिलकुल सामान्य कोटि में रखने लायक है।