बलराम की लघुकथा ‘बहू का सवाल’ की मर्म स्पर्शिता में गाढ़ापन का अभाव है। सजीव संवाद शैली के माध्यम से स्थिति का सजीव अंकन कर रचना विश्वसनीयता व जीवंतता अर्जित तो कर लेती है पर विषयवस्तु का हल्कापन रचना की प्राणवत्ता पर तीखा प्रहार करता है जिससे रचना सजीव होकर भी निष्प्राण हो जाती है, जीवित होकर भी रौर्यवीर्य, शैनककांति से श्रीहीन। रचनात्मक रस अथवा सृजनात्मक माधुर्य से वंचित–विरहित यह रचना साधारण कोटि में रखने लायक हो गई है। रचना का प्रभाव क्षण–स्थायी है। लगता है रचना गढ़ी गई है किसी विषय वस्तु या दृष्टिकोण को लेकर रचना स्वयं बनी नहीं है, स्वयं पककर अवतरित नहीं हुई है।