कुछ वर्षों पहले विश्व की सबसे छोटी लघुकथा पर एक पुरस्कार दिया गया और मुझे जहाँ तक याद है, कहानी (अर्थात् कथा) इस प्रकार है :
‘‘मैं भूतों पर विश्वास नहीं करता।’’- रेल के डिब्बे में एक सज्जन ने अपने साथी यात्री से कहा।
‘‘अच्छा, आप विश्वास नहीं करते!’’ साथी यात्री बोला और लुप्त हो गया।
हालाँकि इसका उपयोग चुटकुले के रूप में किया जा सकता है ;लेकिन इसमें चालाकी है और मैंने इसका उदाहरण इसलिए दिया है कि बहुत–सी लघुकथाओं की जरूरी आवश्यकताओं को सिर्फ़ कुछेक शब्दों में ही आबद्ध किया जा सकता है।
यहाँ पर बहुत ही ठीक तर्क है कि कथा छोटी क्यों हो? क्योंकि उसका छोटे–से–छोटा अंश भी प्रासंगिक होना चाहिए। थेगली लगाना और लफ़्फ़ाजी नहीं होनी चाहिए। हर संज्ञा, हर वाक्य, हर शब्द किसी–न–किसी तरह कहीं से भी घटना से जुड़ा हो या पात्रों से या कथा की आबो–हवा से उसका सम्बन्ध हो ताकि जब हम कथा के अंत में पहुँचे तो हमें विश्वास हो कि किसी भी एक पंक्ति को अगर हम छोड़ गए हैं तो कुछ–न–कुछ आवश्यक, काम का हमसे रह गया है।
(‘मॉडर्न शॉर्ट स्टोरी’ की भूमिका के कुछ अंश)