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मानव मूल्यों का संरक्षण: आज की जरूरत

नीले आसमान में मेघ की भेंट हंस से हुई। मेघ ने आत्मतुष्टि के भाव से हंस से कहा, ‘‘तुमने गौर किया होगा, मेरे दोस्त,तुममें और मुझमें कितनी समानता है। हम दोनों यहाँ नीले आकाश में उड़ते हैं।’’
‘‘ऐसे नहीं है,’’ हंस ने जवाब दिया- ‘‘हम समान नहीं हैं। मैं हवा के खिलाफ चलता हूँ, तुम उसके साथ प्रणय–सूत्र में बँध गए हो।’’ (हाइ दाइक्वान:हंस और मेघ)
बादल का हवा के बहाव के साथ बहना उसका गुण धर्म है, जिसके चलते वह सुदूर सूखे क्षेत्रों को बरसात से सराबोर कर देता है। आज हम बहुत बुरे वक्त से गुज़र रहे है, अपसंस्कृति की ऐसी जहरीली हवा चली है कि साँस लेना दूभर है। मूल्यों का क्षरण सर्वाधिक चिन्ता का विषय है । किसी भी गलत बात का प्रतिकार करने पर ‘सब चलता है’ की निरपेक्ष टिप्पणी प्राय: सुनने को मिलेगी, इसे जहरीली हवा के साथ बहना ही तो कहा जाएगा । मानव मूल्य ऐसी हवा के साथ बहकर नहीं बचाए जा सकते हैं ।शासन ,सत्ता ,न्याय और समाज सभी जगह सुविधाभोगी ,धनलोलुप अवसरवादी लोगों की बहुतायत होती जा रही है ; जिनके सामने उनका और उनके परिवार का वर्त्तमान और भविष्य ही सब कुछ है,देश समाज और विश्व का जनहित दूर–दूर तक नजर नहीं आता । स्वकेन्द्रित जीवन से बाहर उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं देता, जो भी कुछ है वह है– निजी स्वार्थ,बेशर्मी और बेरहमी की सीमा तक । यह सोच मनुष्य की फितरत कही जा सकती है ,पर मानव या मानवता की पहचान नही । परन्तु इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि स्वार्थ के भेड़ियाधँसान में मानवता अपनी अन्तिम साँसें गिन रही है ।
आजादी के बाद चरित्र और मूल्यों का क्षरण हमारे भारतीय समाज की निरन्तर घटनेवाली सबसे बड़ी दुर्घटना बन गई है । रोज के अखबारों के पन्ने तथाकथित बड़े लोगों की काली करतूतों से काले नजर आते हैं । ये बेहया लोग खुद पर कसे फन्दों से जैसे– तैसे करके बाहर आने का प्रयास करते हैं। निकलने के लिए सूराख भी मिल जाए तो सर्कस के जोकर की तरह मुस्कराते हुए उसी से बाहर निकल आते हैं । रुग्ण मानसिक वृत्ति के लोगों के लिए यही लोग चटखारेदार खबर होते हैं और कुछ चैनल तो इनकी काली करतूतों के कारण ही जिन्दा है । अच्छे लोगों के अच्छे काम इनके लिए खबर नहीं है।आम आदमी आज भी सब कुछ खोने के लिए तैयार है, पर अपने मूल्यों से डिगने को तैयार नहीं है । यही आम आदमी भ्रष्टाचार की सुनामी से ग्रस्त समाज में एकमात्र आशा की किरण है । यह आम आदमी किसी अखबार के पन्नों की कहानी नहीं बनता,अधिकार–शून्य होने पर भी मानवता के मूल्यों की स्थापना के लिए कटिबद्ध है । भूख और अभाव के ताप झेलकर भी अविचलित होकर मानवता के लिए चन्दन का टीका भले बन जाए ,किसी शक्ति–सम्पन्न खास आदमी की तरह ( कोई मजबूरी न होने पर भी) माथे पर कालिख नहीं लगाता । यह वही आदमी है , तमाम अभावों से जूझते हुए भी जिसका जमीर जिन्दा है । धारा के विरुद्ध बहने वाला यह हंस अपने ‘स्वत्व’ को किसी भी मूल्य पर बाजार में बेचने को को तैयार नहीं होता ।
दुनिया में प्रतिदिन जो अच्छे काम हो रहे हैं , उनका नोटिस बहुत कम लिया जाता है । अच्छे कार्य यदि प्रेक्षेपित किए जाएँ तो यह संसार इतना बुरा नहीं है , जितना इसे दिखाने की कोशिश की जा रही है ।गड्ढे में गिरनेवालों का जीवन्त प्रसारण , गड्ढे खोदनेवालों को नहीं रोक पाता है । गड्ढे भरनेवालों को भी दिखाया जाए । सार्वजनिक सम्पत्ति नष्ट करनेवालों को जिस धूमधाम से दिखाया जाता है , उस तत्परता और ईमानदारी से अच्छे काम करने वालों को सामने नहीं लाया जाता। लालफीताशाही किसी भी हद तक जाकर भ्रष्टाचार के भस्मासुर का पोषण करने को तैयार हैं ।
मानव मूल्यों की ये लघुकथाएँ अपने छोटे–से कलेवर में , वह सब कुछ समेटे हुए हैं; जो आज आहत मानवता के लिए अनिवार्य है । मानव मूल्यों की उष्मा से ही पृथ्वी अपनी धुरी पर घूम रही है । आज के विघटनकारी माहौल को सही दिशा में परिवर्तित करने के लिए मानव मूल्यों का संरक्षण सबसे बड़ी ज़रूरत है । लघुकथा डॉट कॉंम का यह विशेषांक इस दिशा में उस उष्मा को जगाने का एक छोटा-सा प्रयास है । ये लघुकथाएँ इस विधा की व्यापक शक्ति का भी आभास कराएँगी कि यह विधा गिने –चुने विषयों तक सीमित नहीं रही है , वरन् हर आँसू–मुस्कान को अभिव्यक्ति देने में सक्षम है। हमें विश्वास है कि ये 128 भारतीय एवं 15 विदेशी लघुकथाएँ आज के सामाजिक प्रदूषण में प्राणवायु का काम करेंगी ।
इन लघुकथाओं पर आगामी किसी अंक में विस्तार से चर्चा की जाएगी ।
-सम्पादक

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