गतिविधियाँ
 
 
   
     
 
  सम्पर्क  
सुकेश साहनी
sahnisukesh@gmail.com
रामेश्वर काम्बोज 'हिमांशु'
rdkamboj@gmail.com
 
 
 
लघुकथा :अनुभूति और अभिव्यक्ति -कमल चोपड़ा
लघुकथा की आकारगत लघुता का मूल कारण कथावस्तु की विशेषता ही है। लघुकथा का कथ्य उद्दीप्त सूक्ष्म, गूढ़, केन्द्रगत, आन्तरिक, एकाकी, प्रखर तीक्ष्ण और तीव्र होता है और इन्हीं गुणों के कारण लघु विशेषण जुड़ा है।
लघुकथा को कथा साहित्य के अन्य गद्य रूपों से पृथक् रूप प्रदान करने में उसकी आकारगत लघुता विशेषता का महत्त्वपूर्ण योगदान है।
आकारगत विशेषता के बावजूद लघुकथा नाम से प्रचलित या रूढ़ विधा के अतिरिक्त अन्य प्रचलित कई छोटी–छोटी रचनाओं को लघुकथा केवल इसीलिए नहीं कहा जा सकता क्योंकि लघुता उनकी भी विशेषता है। लघुता में कथापन भी आवश्यक हो सकता है।
यह आकारगत विशेषता ही ऐसी विवादास्पद विशेष्ताा है जो कि अनेक विद्वानों के लिए लघुकथा के स्वरूप विवेचन करते समय महत्वपूर्ण समस्या रही है ,क्योंकि कहानी कला में लघुता पर उसके स्वरूप की खोज में आकार की लघुता ही को महत्ता नहीं दी जा सकती पर उपन्यास या कहानी का मोटे तौर पर पृथकत्व इस आकारगत लघुता से ही आता है।
लघुता के अतिरिक्त कहानी की सी ही अन्य विशेषताएँ या तत्त्व रहने के कारण लघुकथा पृथक् विधा का दर्जा लेने की पर्याप्त हकदार है।
लघुकथा के आकार पर लघु होना उसके विशिष्ट शिल्प विधान का अनिवार्य परिणाम है।
कथ्य की सघनता और तीक्ष्णता के साथ–साथ कहानी की सी संरचना और जीवन यथार्थ को आत्मसात करते हुए लघुकथा का उद्भव हुआ है और अन्य कथा प्रकारों से वैषम्य के यह आकारगत विशिष्टता आवश्यक है।
आकारगत लघुता कथा–कला जगत में स्वाभाविक और युग की माँग पर आई है। हालाँकि और भी नव्यतर विधाएँ भी युग की मांग पर आई है जैसे आत्मकथा, संस्मरण, रेखाचित्र लेकिन इनमें आकार की कुछ भी ऐसी विशिष्टता नहीं है। रिपोर्ताज यात्रावृत्त, पत्र, रपट, प्रलाप, भावकथा, बोधकथा आदि इन नव्य विधाओं में स्वरूपगत विशेषताएँ हैं पर आकारगत कोई आग्रह नहीं है।
चुटकुले की आकारगत लघुता लघुकथा के लिए खतरा तो है पर चुटकुले में महज हास्य और गुदगुदाहट लघुकथा की समकालीन सार्थकता और व्यंग्यात्मक ‘‘कचोट’’ से आसानी से पृथक् हो जाती है।
समाज के स्थान पर व्यक्ति के और व्यक्ति के स्थान पर उसके सम्पूर्ण व्यक्तित्व के और उसके भी स्थान पर उस के भी किसी अंग के चित्रण में लघुकथा की सार्थकता है।
छोटी से छोटी घटना में कितने अर्थ और संभावनाएँ ध्वनित हो सकती हैं उन्हें विश्लेषित कर उसे पूर्णता प्रदान कर लघुकथा उसे मानवीय संवेदनाओं के साथ जोड़ देती है ,क्योंकि छोटी से छोटी घटना में भी विराट मानवीय संवेदनाओं, निर्माण क्षमता, संघर्ष और अनेक गहन गूढ़ अर्थ निहित हो सकते हैं।
आकारगत लघुता ‘‘बात’’ के भार को हल्का नहीं करती। लोहे के बाट का भार भूसे के बहुत बड़े ढेर से भी ज्यादा भारी होता है।
सभी कथानकों का सार संक्षेप संकेत में लिख देने की चालाकी पकड़ी जा सकती है। लघुकथा में लघु का अर्थ यहाँ आकारगत लघुता को ही ध्वनित करता है। प्रकार और प्रभाव को उसका कथ्य विस्तारित कर उसे सम्पूर्ण अभिव्यक्ति का दर्जा दिलाता है।
शब्द संख्या निर्धारित करना सीमा बाँधना है और सीमा बाँधने पर कोई भी चीज सीमित हो जाती है। छोटी रखने के लालच में विस्तार की मांग करने वाला कथ्य कहानी की भूमिका मात्र रह जाता है।
लघुकथा की शब्द संख्या का निर्धारण लघुकथा के कथ्य के आधार पर होना चाहिए।
लघुकथा के आकार को शब्दों या पृष्ठों की संख्या निर्धारित करना लघुता के सृजनात्मक पक्ष पर अंकुश लगाना है। अधिकतर लघुकथाएँ प्लस–माइनस 500 शब्दों तक ही पाई गई है। लेकिन शब्द संख्या निश्चित या निर्धारित तो नहीं ही की जा सकती। कम–ज्यादा की छूट तो होनी ही चाहे, होती भी है।
लघु आकार लघुकथा की कई विशेषताओं में से एक है ,एकमात्र नहीं।
लेखकीय तटस्थता और संक्षिप्त जीवन सत्यों, सघन संवेदनात्मक रूप में चित्रण करना ही लघुकथा लेखक की कुशलता है।
अधिक तीक्ष्ण दृष्टि और सूक्ष्म मानवीय संवेदना, लघुकथा के संदर्भ में अधिक महत्त्वपूर्ण है। कथ्य की गहन और सूक्ष्म चयन और उसकी उचित अभिव्यक्ति उसे मानवीय संवेदना से जोड़ती है और उस की निष्पत्ति उसे अतिरिक्त महत्त्व दिला जाता है।
स्थूलता किसी भी रचना को वर्णात्मक लफ्फाजी, विवरणात्मक फैलाव और विषयान्तर की ओर ले जाती है।
यहीं स्थूलता, लफ्फाजी और फैलाव लघुकथा से बड़ी सफाई और कुशलता से काँट–छांट दिया जाता है।
लघुता की सीमा निर्धारित कर अभिव्यक्ति करते हुए रचनाकार को एक शब्द आगे और नहीं.... ‘‘कहना सृजनरत शिल्पी का गला घोंट देना है। परन्तु अपनी बात पूरी कर लेने और उस बात के आशय को स्पष्ट कर देने का मौका तो लघुकथा में मिलता ही है।
इधर उधर के गिले शिकवे छोड़कर सीधे अपना आक्रोश व्यक्त करना लघुकथा का अपना अंदाज है। अपना अंदाजेबयाँ है। उस औरत की तरह नहीं जो अपने बच्चे की दवाई लेने के लिए डाक्टर से पड़ोसी की साली के चरित्र का बखान शुरू कर दे। विषयान्तर से अत्यधिक परहेज व सपाट घुमावदार सड़क को छोड़कर सीधी (परन्तु दुर्गम) चढ़ाई लघुकथा की क्षमता का परिचायक है।
आज स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाने की प्रवृत्ति के परिणामस्वरूप लघुकथा में स्थूल वस्तुओं और चित्रों की अभिव्यक्ति ना कर संश्लिष्ट घटनाओं, विशिष्ट स्थिति, गहन–गूढ़, भावनाओं, सूक्ष्म, संवेदनाओं, तीक्ष्ण विचारों की सरल सूक्ष्म और सार्थक अभिव्यक्ति लघुकथा में होती है।
लघुकथा लेखक की दक्षता मुख्य, प्रखर तीक्ष्ण गहन गूढ़, तीव्र, पूर्ण और सूक्ष्म कथा के प्रस्तुतिकरण की ही नहीं बल्कि समस्त लघुकथा में परिव्याप्त सामान्य मनोदशा से उस के शिल्प विधान में संशलिष्टबुनावट और प्रभावान्विति लाने तक है। यह आकारगत विशेषता लघुकथा की एक अतिरिक्त विशेषता है।
-0-
कमल चोपड़ा
1600/114, त्रिनगर,दिल्ली–110 035.

 
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°°
 
 
Developed & Designed :- HANS INDIA
Best view in Internet explorer V.5 and above