प्रश्न : लघुकथा का साहित्य में क्या स्थान है?
उत्तर : लघुकथा कथात्मक अभिव्यक्ति का लघुतम रूप है ?
प्रश्न : लघुकथा के प्रारम्भिक काल के विषय में.....?
उत्तर : पंचतंत्र, हितोपदेशादि में लघु बोधकथाएँ हैं। पश्चिम में आस्कर वाइल्ड की लघुकथाएँ हैं, लेबनान के खलील जिब्रान की लघुकथाएँ है। इनका सबका मिला–जुला प्रभाव भारतीय लघुकथा पर है। लघुकथा को परम्परा के नाम पर हितोदेश, पंचतंत्र से जोड़ सकते हैं। पुराणों तथा दर्शन ग्रन्थों के दृष्टांत बहुत है।
प्रश्न : इन दिनों लिखी जा रही लघुकथाओं की प्रमुख कमजोरियां कौन–सी है?
उत्तर : लघुकथाओं में चरम बिन्दु (climax) का महत्त्व है। यह अन्त में आना चाहिए। काफी लघुकथाओं में यह नहीं आता या कमजोर आता है।
प्रश्न : लघुकथा का मिनी कहानी एवं व्यंग्य से क्या संबंध है?
उत्तर : लघुकथ को मिनी कहानी कह सकते हैं। लघुकथा में व्यंग्य प्रधान तत्व है।
प्रश्न : लघुकथा की वर्तमान स्थिति कैसी लगती है?
उत्तर : अच्छी है।
प्रश्न : आज इतनी अधिक लघुकथाएँ क्यों लिखी जा रही है?
उत्तर : कथन लघुतर होता जा रहा है और लघुकथा तीखा प्रभाव छोड़ती है। प्रभाव एक पिन चुभोने जैसा होता है।
प्रश्न : लघुकथा का प्रारूप कैसा होना चाहिए?
उत्तर : कम–से–कम शब्द होने चाहिए। विशेषण–क्रिया–विशेषण नहीं हों और चरम बिन्दु तीखा होना चाहिए।
प्रश्न : लघुकथा का आकार कितना हो?
उत्तर : वस्तु के हिसाब से ही आकार तय होगा।
प्रश्न : लघुकथा लिखते समय ध्यान रखने योग्य बातें...?
उत्तर : क्या कहना है, इसका ध्यान रखना चाहिए।
प्रश्न : आजकल लिख रहे लघुकथा लेखकों की स्थिति पर आपके विचार.....
उत्तर : मैं इस पर कुछ नहीं कहूँगा। साधारणत: ठीक हैं।
प्रश्न : लघुकथा को प्रभावशाली बनाने के लिए और कोई विशेष बात....?
उत्तर : एक तो लेखकों में सामाजिक चेतना होनी चाहिए। अन्तर्विरोध पकड़े। शैली का भी सहज होना आवश्यक है।
प्रश्न : स्वस्थ लघुकथा के क्या मापदण्ड हो सकते हैं?
उत्तर : छोटी प्रभावशील और विचार करने को बाध्य करने वाली रचना लघुकथा हो।
प्रश्न : पिछले दिनों चले लघुकथा आन्दोलन पर आपके विचार....? क्या किसी विधा की उन्नति के लिए आन्दोलन जरूरी है?
उत्तर : आंदोलन के मुद्दे मेरी समझ में नहीं आते। कोई लघुकथा–आंदोलन था ही नहीं। जरूरत भी नहीं है।
प्रश्न : क्या किसी विधा की उन्नति के लिए समीक्षा आवश्यक है?
उत्तर : निश्चित ही समीक्षा में आवश्यक जानकारी होती है।
प्रश्न : इस विधा को समीक्षकों द्वारा गम्भीरता से न लिये जाने के क्या कारण है?
उत्तर : नहीं, ऐसी बात नहीं है। समीक्षक आकर्षित तो हो रहे हैं।
प्रश्न : लघुकथा की समीक्षा के क्या निकष हो सकते हैं?
उत्तर : जो निकष कहानी की समीक्षा के होते हैं, वही लघुकथा की समीक्षा के निकष माने जाएँगे।
प्रश्न : लघुकथा का समीक्षा पक्ष पुष्ट न हो पाने के क्या कारण है?
उत्तर : लघुकथाएँ समीक्षकों का पूरा ध्यान खींचने लायक शायद अभी नहीं हुई है।
प्रश्न : इसके समीक्षा पक्ष को पुष्ट करने के लिए लघुकथा लेखकों की क्या भूमिका हो सकती है?
उत्तर : लघुकथा लेखक खुद समीक्षा भी लिखें।
प्रश्न : इसके बेहतर भविष्य के लिए कोई योजना?
उत्तर : मेरी नजर में कोई योजना नहीं है।
प्रश्न : क्या आपको इस विधा का भविष्य उज्ज्वल लगता है?
उत्तर : भविष्य जरूर उज्ज्वल है। फार्म हर विधा का छोटा होता जा रहा है।
प्रश्न : लघुकथा लेखकों के लिए कोई सुझाव या संदेश?
उत्तर : अनुभवों का विश्लेषण करें, नज़रिया हो, अनुभवों का सही अर्थ करें और कम–से–कम शब्दों में कह दें।
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