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अध्ययन-कक्ष - रूप देवगुण
लघुकथा में संपादित संकलनों का महत्त्व : रूप देवगुण
 

हिन्दी लघुकथा को आगे बढ़ाने में, उसे एक रफ्तार देने में भरपूर सहायता दी है सम्पादित संकलनों ने। इन्होंने उसकी अँगुली को पकड़ा है, उसे चलना सिखाया है और फिर स्वयं दौड़ते हुए उसे दौड़ना सिखाया है। एकगति दी है उसे इन्होंने।
लघुकथा के पास अधिकतर नवोदित लेखक थे, लघुकथाएँ भी बहुत कम थी, उस समय अगर सम्पादित संकलन नवोदित लेखकों की सहायता के लिए न आते, तो फिर सोचिए, आज इस लघुकथा का क्या हाल होता।
संपादित संकलन एक साँझा पवित्र यज्ञ होता है, जिसमें सब एकजुट होकर जुटाते हैं पैसे भी तथा रचनाएँ भी और तब फलस्वरूप इन्हें मिलता है इन्हें एक साँझा संकलन, जिसमें सभी के योगदान के चिह्न स्पष्टत: दिखाई देते हैं। ऐसे न जाने कितने यज्ञ किए गए, कितनी आहुतियाँ दी गई, तब कहीं जाकर लघुकथा का रूप सँवरा, उसे प्रसिद्धि मिली।
ऐसे समय में जब अधिकतर प्रतिष्ठित समाचार पत्र–पत्रिकाओं ने इसे या तो नकार दिया था या फिर इस पर तरस खाकर एक फिलर के रूप में कहीं किसी पृष्ठ के किसी कोने में स्थान दिया, ऐसी निस्सहाय अवस्था में अगर सम्पादित संकलनों का कार्य आरम्भ न होता तो आज जिस शिखर पर बैठकर लघुकथा मुस्कुरा रही है, शायद उसका ऐसा सुन्दर चेहरा हम कभी भी देख न पाते।
सम्पादित संकलनों के इस पुनीत कार्य में उन लोगों ने भी भाग लिया जो लघुकथा हेतु कुछ करना चाहते थे, वे भी सामने आए जो शार्टकट से रास्ता तय करना चाहते थे। उनका तो योगदान था ही जो लघुकथा की पहचान रखते थे और नवोदित लघुकथाकार का भी पीछे रहने का सवाल ही पैदा नहीं होता, क्योंकि हम परिश्रम से उन्हें अधिक फल मिलने की पूर्ण आशा थी।
फलस्वरूप कई रंगों में रँगे हिन्दी सम्पादित लघुकथा–संकलन अपनी छटा दिखाने लगे। बहुत से संकलन तो एक ही रंग में रंगे दिखाई देते थे–एक लघुकथाकार–एक उसकी रचना। ऐसे संकलन सबसे अधिक प्रकाशित हुए। इन संकलनों की सबसे बड़ी बात यह थी कि इन्होंने अधिक से अधिक लेखकों को अपनी परिधि में समेटा। ऐसे संकलनों में नवोदित भी होते थे और प्रतिष्ठित भी। प्रतिष्ठित लेखकों की धाक जमती थी और नवोदित लेखकों को मिलता था प्रोत्साहन।

पुस्तक रूप में रचना का महत्त्व अधिक होता है। इस रूप में प्रकाशित रचना पुस्ताकालयों की शरण ले वर्षों तक जी सकती है। नवोदित लेखकों को लगा, उन्हें और लिखना चाहिए और फलस्वरूप बहुत से साधारण कोटि के लेखक आगे बढ़ने लगे और आज भी ऐसे बहुत से लेखक हैं, जिनका एक भी एकल लघुकथा–सग्रह नहीं है, पर जो इस क्षेत्र के माने हुए लघुकथाकार हैं।
‘एक लेखक–एक रचना’ से सम्पादित संकलन कुछ आगे बढ़े और फिर एक लेखक–दो लघुकथाएँ, एक लेखक तीन लघुकथाएँ, एक लेखक पाँच लघुकथाएँ और बढ़ते–बढ़ते एक लेखक–ग्यारह लघुकथाएँ और फिर एक लेखक-सत्ताईस लघुकथाएँ लेकर संकलन प्रकाशित होने लगे। इस प्रकार संकलनों में धीरे–धीरे लेखक कम हुए और उनकी रचनाएँ हुई अधिक। इससे लघुकथाकारों की पहचान नाम की चीज़ पाठकों के सामने आने लगीं और एकल लघुकथा–संग्रहों के प्रकाशित हाने की सम्भावनाएँ भी उजागर होने लगीं। इस प्रसंग में डॉ. सतीशराज पुष्करणा द्वारा सम्पादित ‘कथादेश’ लघुकथा–संकलन की बात करना जरूरी है, जिसमें 25 लघुकथाकारों की 25–25 लघुकथाएँ प्रकाशित हुई।
सम्पादित संकलनों ने लेखकों को प्रोत्साहित किया, उनकी रचनाओं की बढ़ोतरी में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया और उन्हें उस स्थान पर लाकर खड़ा कर दिया, जहाँ वे एकल लघुकथा–संग्रह के रचयिता बनने में सफल हो सके।
लघुकथा व लघुकथाकारों की पहचान से परिचित हुए पाठक। अब जरूरत आन पड़ी, लघुकथाओं के साथ–साथ उन पर समीक्षात्मक टिप्पणियाँ दी जाए। कथ्य के साथ–साथ कुछ शिल्प के बारे में भी बतलाया जाए। इस प्रकार लघुकथा के स्वरूप–निर्माण में भी इस प्रकार के संकलन बहुत अधिक सहायक सिद्ध हुए। किन्तु इस प्रकार के बहुत से संकलन ऐसे भी निकले, जिनमें एक लघुकथाकार की एक ही लघुकथा ली गई किन्तु ,कुछ संकलन ऐसे भी आए, जिनमें लेखकों की 5–5 व 11–11 लघुकथाओं को लेकर उन पर समीक्षात्मक लेख भी लिखवाए गए। इस प्रसंग में ‘पड़ाव और पड़ताल’ (सं.मधुदीप) संकलन को सदा याद रखा जाएगा।
अब हिन्दी लघुकथा–संकलन समीक्षात्मक टिप्पणियों से भी आगे बढ़े। लघुकथा का वास्तविक स्वरू क्या है–इससे पाठकों को इतनी जानकारी नहीं थी। इसके लिए जरूरत पड़ी लघुकथा से संबंधित आलेखों की। इस क्षेत्र में बहुत से संकलन इस प्रकार के भी आए, जिनमें लघुकथाकओं के साथ–साथ बहुत से आलेख भी प्रकाशित किए गए। ‘हरियाणा का लघुकथा–संसार’ (सं,रूपदेवगुण–राजकुमार निजात),अपरोक्ष (सं.कमल चोपड़ा), अपराजित कथा–1(सं. रामजी शर्मा ‘रजिका’) कुछ ऐसे ही संकलन थे।
लघुकथा पर कुछ आक्षेप भी लगाए गए। जैसे–यह तो चुटकुलेबाजी है–आदि। इन आक्षेपों का निराकरण करने के लिए जरूरत थी सशक्त चर्चित लघुकथाकारों को सामने लाने की। श्रेष्ठ लघुकथाकाओं को सामने लाने के लिए एक अन्य प्रकार का प्रयास किया गया। लघुकथाओं से संबंधित प्रतियोगिताएँ करवाकर उन पुरस्कृत लघुकथाओं को संकलनों में विशेष स्थान दिया गया। ‘चिनगारियाँ’ (सं.रूप देवगुण, इन्द्रमोहन शर्मा’), ‘सीमाओं का चक्रव्यूह’ (कृष्णकुमार धमीजा’) तथा ‘संघर्ष’ (महेन्द्र सिंह महलान, अंजना अनिल’) कुछ इस प्रकार के ही संकलन हैं।
अब क्षेत्रों की बात चली। यद्यपि मध्यप्रदेश, उारप्रदेश, दिल्ली का कम योगदान नहीं किन्तु बिहार, हरियाणा तथा राजस्थान का योगदान भी उल्लेखनीय रहा। फलस्वरूप कुछ ऐसे संकलन भी अस्तित्व में आए, जिनमें प्रदेश के लघुकथाकारों की बात हुई। इस प्रसंग में ‘बिहार की हिन्दी लघुकथाएँ (सं. सतीशराज पुष्करणा), तथा ‘राजस्थान का लघुकथा–संसार’ (सं.महेन्द्र सिंह महलान, अंजना अनिल) संकलन उल्लेखनीय हैं। अलग–अलग प्रदेश के लघुकथाकारों को लेकर अब भगीरथ परिहार भी संकलन बनाने में प्रयासरत हैं।
विशेष वाद या विषय को लेकर भी कुछ संकलन प्रकाशित हुए। जैसे–‘हिन्दी की जनवादी लघुकथाएँ’ (सं-रायतन प्रसाद यादव’), ‘शिक्षा–जगत् की लघुकथाएँ (सं. रूपदेवगुण, अनिल शूर आजाद), ‘स्त्री–पुरुष के सम्बन्धों की लघुकथाएँ (सं. सुकेश साहनी), ‘आंतक’ (सं. धीरेन्द्र वर्मा व नंदल हितैषी), व ‘आयुध’ (सं. कमल चोपड़ा),‘दहशत’ (सं. अमरनाथ् चौधरी ‘अब्ज़’) कुछ ऐसे ही संकलन हैं। किसी विधा को समृद्ध करने के लिए दूसरी भाषाओं के साहित्य का अनुवाद भी जरूरी है। इस क्षेत्र में ‘पंजाबी की श्रेष्ठ लघुकथाएँ (सं. डॉ. अशोक भाटिया), ‘शतकथाएँ’ (सं.डॉ. श्यामसुन्दर दीप्ति) व विश्व लघुकथा कोश (चार भागों में –बलराम) संकलन उल्लेखनीय हैं।
इस प्रकार लघुकथा विधा आगे बढ़ी, किन्तु बढ़ी सम्पादित संकलनों के अवलम्ब से ही। इन संकलनों ने हिन्दी लघुकथा की अँगुली पकड़ी, उसे धीरे–धीरे अपने साथ लेकर चले, साहित्य जगत् को इसकी पहचान करवाई, इसे स्थापित किया, समृद्ध किया और आकर्षण का केन्द्र बनाकर छोड़ा।
जहाँ पहले बलात्कार, पुलिस, दहेज आदि विषयों को लेकर ही लिखा जाता था, वहाँ से यह विधा आगे बढ़ी और विभिन्न विषयों को लेकर चली। शिल्प की दृष्टि से भी इसका बहुत परिष्कार हुआ। इसके कारण थे– लघुकथा संकलनों में लघुकथाओं का प्रकाशित होना, उस पर होने वाली समीक्षात्मक टिप्पणियों का डर तथा सशक्त लघुकथाओं की इन संकलनों हेतु माँग। अत: इस प्रकार इन संकलनों ने लघुकथा को एक गति दी, उसकी स्वरूप दिया तथा उसे एक सशक्त विधा के रूप में स्थापित किया।
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