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अध्ययन-कक्ष - जगदीश कुलरियाँ
पंजाबी लघुकथाकार हरभजन सिंह खेमकरणी से विशेष बातचीत
जगदीश कुलरियाँ
 

हरभजन सिंह खेमकरणी पंजाबी साहित्य के चर्चित हस्ताक्षर हैं। कथा, लघुकथा और कविता के क्षेत्र में इनका प्रमुख नाम है। पंजाबी लघुकथा के क्षेत्र में भी खेमकरणी जी का नाम प्रथम कतार में आता है। ये लघुकथा में अपने रचनात्मक योगदान के साथ साथ इसके विकास के लिए भी यत्नशील हैं। प्रत्येक साल लघुकथा प्रतियोगता करवा कर नए और पुराने रचनाकारो को प्रोत्साहित करना भी खेमकरणी जी के हिस्से में ही आया है। बुजर्ग होने के वाबजूद यह दूरदराज के क्षेत्रो में होने वाले लघुकथा सम्मेलनों में नवयुवकों की तरह भाग लेते हैं। इनकी रचनाएँ सामाजिक नैतिक पतनशीलता , जीवन-मूल्यों की चिन्ता ते, मनुष्य के दोगले चरित्र , बुज़ुर्गों की दुर्दशा, रिश्तों की टूटन आदि विषयों को प्रमुखता से उभारती है। इनके साहित्यिक सफर और जीवन के बारे में मुलाकात करने का अवसर प्राप्त हुआ। मुलाकात के दौरान जो बातचीत हुई ,प्रस्तुत हैं :
• खेमकरणी जी, सबसे पहले बात आपके परिवारिक जीवन से ही शुरू करते हैं इस के बारे में कुछ विस्तार से बताए?
- कुलरियाँ जी, मेरा जन्म 10-11-1941को खेमकरण में हुआ। मेरे पिता जी का नाम स. चनण सिंह माता जी का नाम श्रीमती पूर्ण कौर था। मेरे दो छोटे भाई स. राणा प्रकाश सिंह और स. जसवंत सिंह है। मेरे पिता जी ने उपजीविका के लिए कई कार्य किए। खेती के काम में रुचि न होने की वजह से उन्होंने कुछ समय लाहौर के किसी कारखाने में काम किया। इस के बाद उकाडा (पाकिस्तान) के हौजरी एक कारखाने में मैनेजर के तौर पर कार्य किया। 1947 के विभाजन के बाद वह लुधियाना में कार्य करते रहे और माता जी परिवार के साथ खेमकरण में ही रहते रहे। मेरा ननिहाल किसान परिवार होने के कारण हम भी किसानी का कार्य करते रहे । जिससे घर का गुजारा आसानी से चलता रहा। उकाडे में सारी जमीन जायदाद छूटने का गम हमेशा पिता जी को सताता रहा जिसके कारण वह अकसर बीमार रहने लगे और फिर वह खेमकरण आ गए। यहाँ पर नई शुरूआत के तौर पर टेलर मास्टर काम सीखा और इससे घर का गुजारा और भी अच्छी तरह से चलने लगा। हमारी माता जी को बच्चों को पढाई कराने का बडा शौक था ; जिसके कारण हम तीनो भाई तंगी काटते हुए भी मैट्रिक पास कर गए और हमें केन्द्रीय सरकारी सर्विस भी मिल गई। मैं एम.ई.एस. (डिफैंस डिर्पाटमैंट) में सिविलियन क्लर्क भर्ती हो गया और आफिस सुपरिन्टेंडैंट के पद से 2001 में रिटायर हुआ हूँ। 1965 की जंग में खेमकरण पाकिस्तान के कब्जे में आ जाने कारण हमारी सारी जायदाद छिन गई। इस सब संघर्ष से अभी जीवन पटरी पर आया ही था कि 1971की जंग ने हमें फिर बेघर कर दिया। अब मैं 1980 से अमृतसर में रह रहा हूँ। मेरा बेटा फोटो ग्राफर है। बडी बेटी स्कूल में लैक्चरार है। और छोटी प्राइबेट स्कूल में अध्यापिका है।
•आपको लेखक बनने का एहसास कब हुआ या वे कौन से कारण है, जिन के कारण आप इस ओर अग्रसर हुए?
- स्कूल में पढते हुए मैं अकसर बाल-सभा में भाग लिया करता था। पाठ्य-पुस्तकों के साथ-साथ मैं कुछ धार्मिक व देश भक्ति की कविताओं को भी याद कर के सुनाता था। स्कूल में होते हर कार्यक्रम में मेरी उपस्थिति जरूर होती । हम दो -तीन दोस्त शरारत करते समय शिक्षकों पर गानों की पैरोडी बनाते, जिसको अकसर जबानी ही याद रखते। इसको माना जा सकता है कि यह घटनाएँ मेरे लेखक बनने में बीज की तरह सहायक हुई ।सर्विस के दौरान ही मैने ज्ञानी, बी.ए., एम.ए. पंजाबी की। विभाग के नियमों के अनुसार योलकैंट (धर्मशाला), शिमला, ऊधमपुर और श्रीनगर जैसे रमणीक स्थानों पर हुए मेरे तबादलों के कारण जहाँ पर इस स्थानों पर रहने का अवसर प्राप्त हुआ, वही पर इन स्थानों के बारे में प्रमुख लेखकों द्वारा लिखी रोचक बातें भी मेरे सामने आती। ऐसे में मन के अन्दर कुछ लिखने की तरंग उठती। ऐसी तंरगों ने कविताओं का रूप धारण किया ,पर ये रचनाएँ मात्र नोट बुक तक ही सीमित रही । इनको किसी मैगजीन या अखबार में भेजने का साहस नही कर सका और न ही इसके बारे में किसी ने उत्साहित किया। जब मेरा तबादला 1969 में जालंधर कैंट में हुआ तो जालंधर शहर में रहते उन विद्वानों को मिलने का मन किया जिनके बारे में पाठ्य पुस्तकों अथवा अखबारों, रिसालो में पढ़ा था। वहाँ पर पता चला कि प्रत्येक रविवार पंजाबी साहित्य सभा की बैठक होती है यहाँ पर डा. रौशन लाल आहूजा, प्रो. प्यारा सिंह भोगल, हरनाम दास सहराई और ज्ञानी भजन सिंह और कई नामवर लेखकों से मिलने का सौभाग्य प्राप्त हुआ। मन में फिर लिखने का विचार आया। इस समय मैंने एक कहानी लिखी जो दैनिक ‘कौमीदर्द‘ में प्रकाशित हो गई। मैंने लगभग ३० वर्ष की आयु में लिखना शुरू किया और लिखने का सिलसिला ऐसा चला कि मेरी रचनाएँ अकसर अखबारों और पत्रिकाओं में छपने लगी। यह सफर जारी है और मैं कहानियों के साथ-साथ लघुकथा और कविताएँ भी लिखता आ रहा हूँ।
• आपने लेखन की शुरूआत किस विधा से की?
-मैंने लेखन की शुरूआत लघुकथा से की है। इसके बाद साहित्य की अन्य विधायों पर कलम चलाई है।
• जब आप कहानी लिखते थे तो लघुकथा की तरफ एकदम झुकाव क्यों हुआ? जब के आम देखने में आता है कि लघुकथा लेखक बाद में कहानी लिखने लगते हैं पर आप विपरीत दिशा में क्यों चल पडे?
- कुलरियाँ जी मैं कहानी से लघुकथा की तरफ नही आया, बल्कि यह दोनो विधाएँ जाने अनजाने में साथ-साथ ही विकसित हूई। मेरी पहली कहानी १९७१ में छपी थी और मेरी लघुकथाएँ १९७४ में श्रीमती अनवंत कौर और शरण मक्कड द्वारा सम्पादित किये लघुकथा संग्रह में शामिल हैं। यह भी माना जाता है कि यह सम्पादित पुस्तक लघुकथाओं की प्रथम पुस्तक है। मैं किसी भी विधा को बडी या छोटी नही मानता मेरे लिए सभी विधाएँ सामान हैं।
• आप किन विषयों को आधार बनाकर लिखते हैं ?
- लिखना सिर्फ लिखने के लिए नही लिखा जाता। जब कोई बात, घटना, सामाजिक कुरीति, शोषण अथवा मानवीय सरोकारों से जुड़ा कोई मसला मेरे दिल को छू जाता है तो उसी को आधार बना कर मैं रचना करता हूँ। यह कथा भी हो सकती है लघुकथा भी। मेरी रचनाओं के ज्यादा विषय सामाजिक सरोकारों से जुडे होते हैं। आर्थिक तंगी के कारण आती मुश्किलें, आपकी संबन्धों में पैदा हो रही खटास, मानसिक टूट्न, नारी शोषण, और खासतौर हमारे समाज में वृद्धों की हो रही दुर्दशा से अलावा में राजनीतिक तथा सरकारी कमजोरियों को मैं अकसर ही आपनी रचनाओं का विषय बनाता हूँ।
• आपकी ज्यादातर रचनाएँ वृद्धों की दुर्दशा को क्रेन्द्र में रख कर लिखी गई हैं?
- मैं यह समझता हू आज के समय में वृद्ध एक अछूत- सा जीवन बसर कर रहे हैं । इस बात का जिक्र बहुत कम हो रहा है। मैं यह भी महसूस करता हू कि आज के नैनो टेक्नॉलोलोजी का युग युवा पीढ़ी पर काफी असर डाल रहा है ,जिससे वृद्ध इसका शिकार हो रहे हैं। जिससे संयुक्त परिवार टूट रहे है और पैसे के लालच के कारण अन्य प्रदेशों में जाने के कारण वृद्धो को अकेला ही घर में छोड कर जाया जा रहा है। पश्चिमी संस्कृति अपना प्रभाव डाल रहा है। माँ बाप जिन बच्चों के लिए अपनी सारी जिन्दगी लगा देते हैं ,अपने पावों पर खडा होते ही वे ही उनका निरादर करने लग जाते हैं। यह अलग बात है कि पाँचो उँगलियाँ बराबर नही होती फिर भी ज्यादा संख्या में यही सब कुछ हो रहा है। कुछ वृद्ध भी हालात से समझौता करने को तैयार नही है, ऐसे कुछ ज्यादा पीड़ित ही रहे हैं। इनकी पीड़ा को ही लोगों तक पहुचाने का यत्न कर रहा हूँ।
• क्या पंजाबी लघुकथा का भविष्य सुरक्षित है?
- आधुनिक समय में पंजाबी लघुकथा की स्थिति उत्साहजनक है। हिन्दी के पश्चात पंजाबी में ही सबसे ज्यादा लघुकथाएँ लिखी जा रही है। कई स्थापित लेखक भी इस विधा में रुचि ले रहे हैं। कई लेखक केवल लघुकथा लिखकर ही साहित्य के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थान रखते हैं। नए लेखक आपने लेखन की शुरुआत लघुकथा से करने लगे है। कई विश्वविद्यालय इस पर शोधकार्य करवा रहे हैं। मुझे आशा है कि यह विधा जल्दी ही भविष्य में अपना सम्मानजनक स्थान प्राप्त कर लेगी।
• पंजाबी लघुकथा के विकास में क्या कारण बाधा डाल रहे हैं?
-मैं लघुकथा के विकास में किसी विशेष कारण को वाधा डालने वाला नहीं मानता। विकास किसी भी विधा में समय के साथ होने वाले परिवर्तन को माना जाता है। यदि इस बात को आधार मान लिया जाए तो लघुकथा विकास कर रही है। लघुकथा चुटकले,व्यंग्य, विचार अथवा एक दो लाइनो वाली लघुरचना से अलग की जा चुकी है। आधुनिक लघुकथा में कथारस, रोचकता, विषय, कलात्मकता, वाक्य -गठन और शीर्षक के बारे में लघुकथा लेखक सचेत है। आधुनिक समय में लिखी जा रही पंजाबी लघुकथा किसी भी भाषा में लिखी जा रही लघुकथा से पीछे नहीं।
• पंजाबी लघुकथा में आलोचनात्मक कार्य न के बराबर है? आप क्या कहना चाहेंगे?
-कुलरियाँ जी मैं आप की बात से सहमत हूँ। इस विधा पर आलोचनात्मक कार्य शून्य के जैसा ही है। स्थापित आलोचक इस विधा की और ध्यान नही दे रहें। उनको अभी भी इस विधा का रूप विधान प्रभावशाली नहीं लगता। फिर भी कुछ विद्वान आपनी कार्य कुशलता से सम्भव योगदान कर रहे हैं । कुछ लघुकथा लेखक भी इस और सक्रिय है। मैं इस तरफ से निराश नहीं हूँ। और भविष्य में इस विधा पर पूरा आलोचनात्मक कार्य होने की आशा रखता हूँ। भिन्न-भिन्न विश्वविद्यालय द्वारा इस विधा पर शोध कार्य करवाने को शुभ संकेत माना जा सकता है।
• खेमकरणी जी आप पंजाबी लधुकथा के साथ इस के शुरुआती दौर से ही जुड़े हुए हैं । अब क्या लगता है कि इसके मुकाम के बारे?
- लघुकथा ने साहित्य जगत में एक सम्मान योग्य स्थान प्राप्त कर लिया है, पर अभी भी यह लेखक और पाठकों तक ही सीमित है। समाचार पत्र और मैगज़ीन इसे योग्य स्थान दे रहे है। हर साल लघुकथा की पुस्तकें छप रही है। इन पर आलोचनात्मक लेख लिखे जा रहे हैं। लघुकथा गोष्ठी और सेमिनार हो रहे है, पर अभी भी राजकीय और शैक्षिक संस्थानों ने इससे दूरी बनाई हुई है। अभी तक यह विधा कोर्स की पुस्तकों का शृंगार नही बनी और न ही सरकार की तरफ से किसी पुरस्कार / ईनाम का ऐलान किया है। भरोसे वाली बात यह है कि इस विधा को पाठको का समर्थन मिल रहा है। मुझे यह भी आशा है कि भविष्य में यह विधा और भी ज्यादा लोकप्रिय हो जाएगी।
•क्या आप को यह महसूस नहीं होता कि 1980 के पश्चात् आज पंजाबी लघुकथा एक मुकाम पर रुक गई हो?
-मुझे नहीं लगता कि इस समय के दौरान विधा में कोई रुकावट आई है। इस समय में ही लघुकथा ने कई सम्मान योग्य उपलब्धियाँ प्राप्त की है और नए -नए विषयों को आधार बना कर लघुकथाएँ लिखी जा रही हैं। प्रत्येक विधा में कलात्मक परिवर्तनों को प्रफुल्लित होने में कुछ समय जरूर लगता है। नए लेखक इस विधा को गंभीरता से अपना रहे है। अब यह विधा विश्वविद्यालयो में भी आपनी और ध्यान केन्द्रित कर रही है।
•आप हर साल लधुकथा प्रतियोगिता करवाते हैं? यह कब से करवानी शुरू की और इसका उद्देश्य क्या है?
-पंजाबी लघुकथा प्रतियोगिता मैं पिछले 22 वर्षो से करवा रहा हूँ। सब से प्रथम प्रतियोगिता 1991 में करवाई थी। मिन्नी त्रैमासिक के प्रकाशन के पश्चात् डा. श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ और श्री श्याम सुन्दर अग्रवाल के साथ हुई बैठक में प्रतियोगिता कराने का निश्चय लिया गया था और मुख्य रूप से इसको करवाने का कार्यभार मुझे सौंपा गया। प्रतियोगिता करवाने का मुख्य उद्देश्य चर्चित और नए लेखको को इस विधा के साथ जोडने तथा अच्छी रचनाओं को स्म्मानित करने का है। प्रत्येक वर्ष 60-70 लघुकथाकार मुकाबले के लिए रचनाएँ भेजते है ,जिसमें चर्चित ओर नए लेखक शामिल होते है। इस प्रतियोगिता ने लघुकथा के विकास में योगदान किया है । यह प्रतियोगिता नए विषयों की खोज का भी एक बढ़िया साधन है।
•वर्तमान समय में प्रतियोग्तायों और ‘जुगनुआँ दे अंग संग’ जैसे कार्यक्रमों की क्या सार्थकता है?
- प्रतियोगिताओं के बारे में हमने अभी चर्चा की है। ‘जुगनूआं दे अंग संग’ जैसे कार्यक्रमों का मुख्य उद्देश्य लघुकथा के रूप विधान पर आधारित इस गोष्ठी में भिन्न- भिन्न जगहों से आए लघुकथाकारो द्वारा पढ़ी रचनाओं पर विमर्श करना और लेखको को उनकी रचना की कमियों के बारे में सजग करना है। इन गोष्ठियों के सार्थक प्रमाण भी देखने को मिले है। अंतरराज्यीय सम्मेलनों में दूसरे राज्यों के स्थापित और चर्चित लघुकथाकारो को प्रत्येक वर्ष बुलाकर पंजाबी लघुकथाकारों के साथ संवाद स्थापित किया जा रहा है। इन प्रयत्नों ने पंजाबी लघुकथा की स्थापना में अहम योगदान किया है। इसी आधार पर मैं कह सकता हू कि वर्तमान समय में इन कार्यक्रमो की बडी सार्थकता है।
•पंजाबी लघुकथा के रूप विधान के लिए और क्या कुछ करने की जरूरत है?
-प्रत्येक रचना के रूप विधान में समय-समय पर परिवर्तनों का आना उसके विकास की और संकेत करता है। इस लिए लघुकथा का वर्तमान रूप विधान भी अंतिम नही माना जा सकता। जिस-जिस तरह पंजाबी लघुकथा का विकास होगा उसी तरह इसके रूप विधान में भी परिवर्तन आते रहेगे। इसको बेहतर बनाने के लिए जो विद्वान् लगे हुए है ,उनको और भी यत्न करने चाहिए।
•आने वाले समय में पंजाबी लघुकथा की क्या दशा होगी?
-आधुनिक पंजाबी लघुकथा पंजाबी साहित्य के आँगन में पहुँच गई। मुझे आशा है कि यह विधा यहाँ पर मान सम्मान प्राप्त करते हुए शीघ्र ही साहित्य की दूसरी विधाओं के बराबर का स्थान हासिल कर लेगी।
• अपनी प्रमुख पुस्तको और मान- सम्मान के बारे में भी बताए?
-कुलरियाँ जी अब तक मेरे तीन कथा संग्रह -गली दा सफर, बेला कुबेला और सुमेल तो पार, दो लघुकथा संग्रह थिंदा घडा और चानन, एक काव्य संग्रह ठंडी तत्ती रेत प्रकाशित हो चुके हैं। इस के अतिरिक्त लगभग ३० पंजाबी, हिन्दी और अंग्रेजी की पुस्तको में मेरी लघुकथाएँ शामिल हैं। कुछ लघुकथाएँ पाकिस्तान और आस्ट्रेलिया की पत्रिकाओं में भी प्रकाशित हुई हैं। कुछ लघुकथाएँ नेट पर भी हैं। मुझे लगभग २२ साहित्य सभाओं और साहित्य संगठनों द्वारा सन्मानित किया जा चुका है। जिन में साहित संगम भठिण्डा, पंजाब लोक लिखारी सभा बटाला, विरसा बिहार सोसाइटी अमृतसर, लघुकथा डाट काम, मिनी कहानी लेखक मंच अमृतसर शामिल हैं। सम्मान मिलने से खुशी तो जरूर होती है ,मगर इस से लेखक की जिम्मेवारी और भी बढ़ जाती है। भाषा विभाग पंजाब की तरफ से भी मेरी कथाओं को इनाम मिल चुका है।
• आप अपने लेखन में परिवार का क्या योगदान मानते हैं?
- मेरी कोई साहित्यिक बैक ग्राउंड नही है। पिता जी धार्मिक ड्रामों के साथ जरूर जुडे हुए थे। मेरे लेखन क्षेत्र में परिवार का पूरा सहयोग है। अक्सर मेरी धर्मपत्नी कुलवंत कौर मेरी रचनाओं की पहली पाठक और आलोचक हुआ करती थी। लोकगीत गाने के कारण उसे भी साहित्य सम्मेलनों में बुलाया जाता था। अब मेरा बेटा हरिन्दर पाल सिंह और पोता जयदीप सिंह मेरी रचनाओं को सँभालने में मेरा साथ देता है।
•जब आप को कोई लघुकथा लेखक कहता है तो क्या महसूस होता है?
-जब मुझे कोई लघुकथा लेखक कहता है तो मैं गर्व महसूस करता हूँ। असल बात तो यह है कि अब मैने कथा लेखक की वजह लघुकथा लेखक के तौर पर ज्यादा पहचान बना ली है।
•पाठकों के लिए और कोई विशेष बात ?
- कुलरियाँ साहब मैं हमेशा कोशिश करता हूँ कि अपनी रचनाओं के साथ मानवता के भले के लिए कोई संदेश दूँ। मैं कभी भी अश्लील भाषा का प्रयोग नहीं करता । ‘पर यदि किसी पात्र की सर्जना करते हुए इसकी जरूरत महसूस हो तो केवल सांकेतिक भाषा बरतने की कोशिश करता हूँ। मैं कभी भी अपनी रचना को सिरजते हुए उसमें से स्वाद लेने की कोशिश नहीं करता।

 
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