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इरा शर्मा से हरिशंकर शर्मा की बातचीत(साक्षात्कार)
साक्षात्कार
 

लंदन के स्कूल ऑफ ओरियंटल एण्ड अफ़्रीकन स्टडीज की शोध छात्रा सुश्री इरा शर्मा से मेरी मुलाकात कथाकार सुकेश साहनी के निवास पर हुई। वे हिन्दी लघुकथा शोध के सिलसिले में सामाजिक संदर्भ तलाशने यहाँ पहुँची।
प्रस्तुत है सुश्री ईरा से बात–चीत के प्रमुख अंश......
‘‘सुश्री ईरा शर्मा -इस महानगर में आने पर आपको कैसा लगा?’’
‘‘लघुकथा–शोध यात्रा के उद्देश्य से यहाँ मुझे पारिवारिक माहौल मिला और बहुत अच्छा लगा।’’
‘‘हिंदी लघुकथाओं में आपने ऐसा क्या पाया जिसने आपको भारत (विशेषकर बरेली) यात्रा के लिए बाध्य किया?’’
‘‘शर्मा जी, संस्कृति और परम्परा के सन्दर्भों में विदेशी छात्रों व पाठकों के लिए हिन्दी साहित्य का अध्ययन काफी कठिन है। मैं लघुकथा लेखकों एवं पाठकों से मिलकर अच्छी लघुकथाओं का सामाजिक राजनैतिक एवं साहित्यिक मूल्यांकन की दृष्टि से आयी हूँ।’’
‘‘किस प्रकार की लघुकथाओं ने आपको प्रभावित किया?’’
-इस प्रकार्व का वर्गीकरण बहुत कठिन है ।
‘‘अपने शोध में किस उद्देश्य की तलाश है। आपने इसके लिए लघुकथाओं को ही क्यों चुना?’’
‘‘मेरे शोध का मूल उद्देश्य हिन्दी लघुकथा लेखक एवं पाठक के सम्बन्धों पर जोर देना है। साहित्यिक मापदण्ड पर बहुत कम लोगों को कसा जा सकता है।हिन्दी लघुकथा में सभी पठनीय नहीं है। इसी प्रकार की स्थिति कहानी के संदर्भ में भी हैं। भाग्यवाद एवं उपदेशात्मक प्रवृत्तियाँ हिन्दी साहित्य के नकारात्मक पक्ष हैं।’’
‘‘आपकी योजना हिन्दी के किन–किन लघुकथाकारों से मिलने की है और क्यों?’’
‘‘इस दिशा में मुझे बलराम के भारतीय लघुकथाकोश से प्रेरणा मिली है। सुकेश साहनी के लघुकथा संग्रह है डरे हुए लोग (अंग्रेजी अनुवाद) तथा आइसवर्ग की लघुकथाओं ने मुझे प्रेरित किया। उनकी लघुकथाओं में पठनीय विषय वस्तु एवं साहित्यिक गुण–धर्म ने मुझे बरेली आने के लिए बाध्य किया। इस यात्रा में मैं बलराम अग्रवाल (दिल्ली) सतीश दुबे (इंदौर),राजकुमार निजात, दामोदर खड़से डा. सतीशराज पुष्करणा एवं कमल चोपड़ा से मिलूँगी। अप्रैल माह तक मैं भारत में रहूँगी।’’
‘‘आपकी दृष्टि में एक अच्छी लघुकथा कैसी होनी चाहिए? ’’
‘‘शर्मा जी, सुकेश साहनी की लघुकथा ‘मृत्युबोध’ को ही लें। लक्षण में मृत्युबोध कहानी के निकट है। जहाँ इस प्रकार का अन्तर्द्वन्द्व होता है; वहाँ कथा का विस्तार होता है तथा इस प्रकार की प्रवृत्ति कहानी का संकेत देती है। कथा लेखन में साहित्यिक सौन्दर्य और समृद्ध संदेश का ख्याल ही लघुकथा को लोकप्रिय बना सकता है। इसीलिए मैं सुकेश साहनी की आइसबर्ग, डरे हुए लोग,शासक और शासित तथा आईना जैसी अनेक लघुकथाओं को केन्द्र बनाकर कार्य कर रही हूँ।’’
‘‘आप लघुकथा लेखक नहीं है फिर भी इस दिशा में शोध?’’
‘‘इस शोध का आधार मेरी शैक्षिक योग्यता में वृद्धि करना है, लेखक बनना नहीं। मैं हिन्दी लघुकथा की अच्छी पाठक हूँ। लगभग तीन–चार सौ लेखकों को पढ़ा है तथा मैं यह मानकर चल रही हूँ कि लघुकथा का सामाजिक परिदृश्य है सिर्फ़ साहित्यिक आन्दोलन नहीं मैं यहाँ सामाजिक सरोकारों की जानकारी के सन्दर्भ में संग्रह हेतु आई हूँ।’’
‘‘नये लघुकथा लेखकों के संदर्भ में आप कुछ कहना चाहेंगी?’’
‘‘अपने शोध ग्रन्थ में हिन्दी लघुकथा लेखकों एवं पाठकों के अन्त: सम्बन्धों एवं सामाजिक परिदृश्य को रेखांकित करने के उद्देश्य से ही सुप्रसिद्ध लघुकथा लेखक सुकेश साहनी से मिलने जर्मन से बरेली आई हूँ। नये रचनाकारों में मैं निर्मला सिंह, रमेश गौतम से भी मिली।’’
‘‘जाते–जाते आपका अनुभव....?’’
‘‘शोध के अलावा यहाँ अन्य विषयों पर भी चर्चा हुई। सीमित समय में जानने की जिज्ञासा बनी रही;लेकिन समय ने विराम लगा दिया है। विचार विमर्श में दो दिन कहाँ निकल गए कुछ पता ही नहीं चला। अब तो शेष बातें पत्रों से ही होंगी।’’
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