वह पहले एक आम आदमी था, जो बढ़ते–बढ़ते खासमखास हो गया उसके पास मुहब्बत से भरा एक तरल मन था, जो वक्त–बेवक्त छलकता रहता था। वह धीरे–धीरे रिक्त होकर अशर्फ़ियों के गोदाम में बदल गया।
उस व्यक्ति ने अपना सारा जीवन अपनी महत्वाकांक्षाओं और स्वार्थ में लगा दिया। उसने दूसरों की राह में कांटे बोए और खुद आगे बढ़ा। उसने दूसरों का गला काटकर अपनी गर्दन ऊँची की। उसने सफदेपोशों के साथ कालाबाजारी की और काले धन से काले बादलों को छूने वाले भवन बनाए। हर देश की करेंसी उससे अठखेलियाँ करती थी। उसने नोट कमाया, डॉलर कमाया, पौंड कमाया, रूबल कमाया। बदनामी कमाई और प्रतिष्ठित हुआ। बैंक में रुपया जमा करने के लिए लगातार स्विटरलैंड की यात्राएं कीं। इस तरह उसने अपने स्वार्थ के रंग से दुनिया का हर रंग देखा।
इसके लिए उसे कठिन तपस्या करनी पड़ी। वह पहाड़ों में भी गया तो उसने पहाड़ की ऊँचाई नहीं देखी। समुद्र की छाती पर घूमता रहा, पर समुद्र का विस्तार नहीं देखा। आसमान में उड़ा, पर अनंत आकाश का नीला रंग नहीं देखा। विशाल झरनों के सामने खड़ा रहा, पर उससे छिटककर आती इंद्रधनुषी बूँदों ने उसे नहीं छुआ। उसने दिन को दिन और रात को रात नहीं समझा। उसने भोजन में रुचि नहीं ली। उसने मैथुन में रुचि नहीं ली। उसने संबंधों में रुचि नहीं ली। वह इन सबसे आँख मूंदकर स्वार्थ की विशाल वेदी के सामने बैठकर अपनी संवेदना, कोमल भावना, परमार्थ साधना, सबको स्याहा करता हुआ अपना चित्तलोक साधता रहा।
उसने लाइसेंस पाने के लिए, विदेशी पूँजी पाने के लिए, कारोबार में नंगे क्षितिज ढूंढ़ निकालने के लए, नेताओं, अफसरों और माफिया–नरेशों के आगे पलक–पांवड़े बिछाए, ईमान बिछाया, यहाँ तक कि खुद के साथ बीवी को भी! जब बीवी ने साथ नहीं दिया तो उसने बाकायदा हरम बनाया, जो हराम के काम आया।
उसने हर दिल से व्यापार किया और हर बिल से लाभ कमाया। हर डील में गोलमाल किया और हर बार मालामाल हुआ। इस तरह तस्कर, अफसर और मिनिस्टर–इन तीनों शक्तियों की उसने तन–मन–धन से पूजा की। ये वे त्रिदेव थे, जिनके लिए वह नित्य पलन खुलते ही पलक–पाँवड़े बिछाता था। ये वे त्रिनेत्र थे, जिनकी आँखों पर उसने बड़े जतन से काजल आँजे। इससे उससे कभी कोई चूक नहीं हुई। उन्हें खुश करके उसने खुद को नई बुलंदियों पर पहुँचाया। उसके हौसलों की कोई सीमा नहीं थी। उन्हें उसने बड़ी दिलेरी से खाक से उठाकर आसमान तक पहुँचाया।
ऐसे ही एक दिन जब वह अपने वैभव के बुलंद दरवाजे पर फलों और मेवों की ढेरी के सामने बैठकर अति उत्तम स्कॉच पीते हुए अपनी सफलता के मद में मगन था और उसके दिमाग में नई योजनाओं का उत्ताप उमड़ रहा था, तब उस उत्साहजनक शोर–शराबे के बीच एक लंबी उपेक्षा से दुखी होकर उसके दिल ने आँसू बहाते हुए धड़कना बंद कर दिया। घायल दिल की इस खामोश हरकत से उसके दिमाग की बारूद ओर दिन की अशर्फ़ीी पलक झपकते ही मिट्टीी में तब्दील हो गई। बेचारे डॉन को अपनी बा्दशाहत खत्म होने का पता ही नहीं चला।
जब उसकी अर्थी उठ रही थी तो उसके मूंछों वाले मुस्तैद दरबान ने उसकी मिट्टीी को हाथ जोड़ते हुए मन ही मन कहा, ‘‘हाय मालिक, क्या इसी दिन के लिए तुमने इतना दंद–फंद किया था? आखिर मरना तुम्हें भी हम गरीबों की तरह ही पड़ा।’’