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लघुकथाएँ - देश - अमरीक सिंह दीप
जिंदा बाइस्कोप़

चौदह वर्षीय लड़का पढ़ रहा है। अचानक एक बारह वर्षीय लड़का दबे पांव उसके पास आया और उसके कान में बहुत राजराराना ढंग से फुसफुसाने लगा।
‘‘क्या!...सच्ची...ऐसा?’’
‘‘बाईगॉड.....विद्या रानी की कसम, अपनी आँखों से अभी–अभी देखकर आ रहा हूँ यार....’’
चौदह वर्षीय ने फौरन कॉपियाँ–किताबें परे सरका दीं और उतावली में बारह वर्षीय का हाथ मजबूती से थामकर घर से बाहर आ गया।
चौराहे पर लपटों के चारों ओर लोग घेरा बांधकर खड़े हैं। आग में रोबिन टेलर्स का फर्नीचर, शोकेस और काउंटर धू–धू कर जल रहा है। दुकान का कीमती सामान दंगाई लूटकर सुरक्षित स्थानों पर पहुँचा चुके हैं। धर्मसंघ ने इस बार सारा कार्यक्रम बहुत नियोजित और अनुशासनात्मक ढंग से चला रखा है। हिंसा से लेकर लूटपाट तक में एक कलात्मक शास्त्रीयता है।
रोबिन टेलर्स का मालिक जान बचाकर भाग गया है। नौकर उसका दंगाइयों की गिरफ्त में है। दंगाई उतारकर उसका धर्म परीक्षण कर चुके हैं। उसको आग के हवाले किया जाना तय है।
रोबिन टेलर्स के नौकर को जब चार लोगों ने उठाकर जलती हुई लपटों में फेंका तो चौदह वर्षीय का चेहरा हर्ष, उत्तेजना और आवेश से तमतमा उठा। वह मन ही मन बारह वर्षीय पर खौंखिया उठा, ‘‘......साला, चुगद कहीं का....कभी ढंग से पूरी बात नहीं बताता। मालूम होता तो पापा का कैमरा साथ ले आता.....’’

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