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लघुकथाएँ - देश - भगीरथ
शिक्षा

अध्यापक ने अंग्रेजी का नया पाठ आरम्भ करने से पहले छात्रों से पूछा–‘‘होमवर्क कर लिया है?’’ चालीस में से दस बच्चों ने कहा–‘‘हाँ सर, कर लिया है।’’ बाकी बच्चे चुप रहे। अध्यापक ने उन बच्चों को खड़ा होने का आदेश दिया जो होमवर्क करके नहीं लाए थे। अब एक–एक को ऐसे सवाल पूछने लगा जैसे थानेदार किसी अपराधी से पूछता है।
‘‘होमवर्क क्यों नहीं किया?’’ अध्यापक ने एक से कड़कर पूछा।
वह चुप। बच्चे सहम गए।
‘‘मैं पूछता हूँ होमवर्क क्यों नहीं किया?’’
फिर चुप्पी।
‘‘अबे ढीठ, बोलता क्यों नहीं? क्या जबान कट गई है? वैसे तो क्लास को सिर पर उठाए रहोगे, लेकिन जब पढ़ाई–लिखाई की बात आती है तो इनकी नानी मर जाती है। बोलो, होमवर्क क्यों नहीं किया?’’
‘‘सर...भूल गया।’’ सुरेश ने डरते–डरते कहा।
‘‘भूल गए! वाह! साहबजादे भूल गए! खाना क्यों नहीं भूला? कपड़े पहनना क्यों नहीं भूला? बताओ!’’ अध्यापक ने उसका मखौल उड़ाते हुए कहा।
लड़का चुप। सिर झुकाए खड़ा रहा–अपराध–बोध से ग्रसित। अध्यापक दूसरे बच्चे के पास जाता है।
‘‘और कुन्दन, तुमने होमवर्क क्यों नहीं किया?’’
‘‘सर, मैथ्स का काम बहुत था। टाइम ही नहीं मिला।’’
‘‘अच्छा!....तो तुम मैथ्स का काम करते रहे! इंगलिश तुम्हें काटती है! इसके लिए तुम्हारे पास टादम नहीं हैं मत दो टाइम। इंगलिश अपना भुगतान ले लेगी, बच्चू, समझे?’’ अध्यापक ने धमकी दी।
अध्यापक तीसरे बच्चे के पास गया।
‘‘क्यों बद्रीप्रसाद जी, आपने काम क्यों नहीं किया?’’
‘‘सर, काम तो कर लिया, लेकिन कॉपी नहीं लाया।’’
‘‘वाह! क्या कहने! क्या खूबसूरत बहाना बनाया है! तुम जरूर राज–नेता बनोगे। पढ़ने से क्या फायदा! जओ और एम0एल0ए0 का इलेक्शन लड़ो।’’
‘‘और तुम्हारा क्या कहना है?’’ चौथे छात्र के पास जाकर पूछा।
‘‘............’’
‘‘तुम क्यों बोलेगे! दिन–भर फिरते हो या कंचे खेलते रहते हो। तुम्हें टाइम कहाँ से मिलेगा? चोर–उचक्के बनोगे। बाप का नाम रोशन करोगे। करो, मुझे क्या!’’
‘‘दिनेश, तुम तो अच्छे लड़के थे, तुमने क्यों नहीं किया?’’
‘‘सर, समझ में नहीं आया?’’
‘‘क्यों समझ में नहीं आया?’’ उन्होंने आवाज को सख्त कर पूछा।
‘‘सर, कुछ भी समझ में नहीं आया।’’ बच्चे की आवाज कॉपी।
‘‘मां’–बाप से कहो थोड़ा बादाम खिलाएं। मैं घंटे–भर भौंकता रहा और तुम्हें कुछ समझ में नहीं आया!’’
सभी लड़के लज्जित,अपमानित, मुँह लटकाए खड़े हैं। अध्यापक विजेता की तरह सीना ताने खड़ा है। सजा–चालीस उठक–बैठक और चार–चार बेंत।
एक लड़का सोचता है–जहाँ इतनी जलालत हो ,वहाँ क्या भविष्य बनेगा!
दूसरा सोचता है–बेहतर है इस जहन्नुम से भाग चलें।
दाँत पीसता हुआ तीसरा लड़का सोचता है–इस मास्टर ने ऐसी–तैसी कर रखी है। इसकी तो अकड़ सीधी करनी पड़ेगी।
चौथा सोच रहा है–यह स्कूल है या जेल? मौके की तलाश में है कब उसे खिड़की–दरवाजे और बेंच तोड़ने का सौभाग्य प्राप्त हो।
पांचवां कुछ नहीं सोचता। वह भोंथरा होता जाता है–कुंठित और ठस्स।

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