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लघुकथाएँ - देश - भूपिंदर सिंह
रोटी का टुकड़ा

बच्चा पिट रहा था, लेकिन उसके चेहरे पर अपराध का भाव नहीं था। वह ऐसे खड़ा था जैसे कुछ हुआ ही न हो। औरत उसे पीटती जा रही थी, ‘‘मर जा जमादार हो जा......... तूने रोटी क्यों खाई ?’’
बच्चे ने भोलेपन से कहा, ‘‘मां, एक टुकड़ा उनके घर का खाकर क्या मैं जमादार हो गया ?’’
‘‘और नहीं तो क्या?’’
‘‘और जो काकू जमादार हमारे घर पर पिछले कई सालों से रोटी खा रहा है तो वह क्यों नहीं ‘बामन’ हो गया?’’ बच्चे ने पूछा।
मां का उठा हुआ हाथ हवा में ही लहराकर वापस आ गया।

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