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लघुकथाएँ - देश - रश्मि
बड़े आदमी की माँ

तेज चिलचिलाती धूप में एक माँ अपने बेटे का बैग थामे उसे स्कूल से लेकर चली आ रही है। मन में बड़े–बड़े अरमान लिए कि,‘मेरा बेटा एक दिन ‘बड़ा आदमी’ बनेगा।’ हाथ की छतरी ऐसे पकड़े है कि खुद की कुछ परवाह नहीं है किंतु बेटे पर धूप का एक कतरा भी न पड़ने देती है।
तीस साल बीत चुके हैं, आज उसका बेटा ‘बड़ा अधिकारी बन चुका है, सारे शानो–शौकत का मालिक है परंतु वह माँ आज भी चिलचिलाती धूप में स्कूल का बैग थामे अपने पोते को साथ लिए चली जा रही है, छाता भी वैसे ही पकड़े है कि पोते पर धूप का एक कतरा भी न पड़े, यकीनन यह पोता भी ‘बड़ा अधिकारी’ बनेगा....।

 

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