|
प्राइमरी स्कूल की पहली कक्षा के तीन छात्र और दो छात्राएं पार्क के घास के मैदान पर बैठकर शुरूआती सर्दियों की मद्धिम धूप सेंक रहे थे।
उन्होंने एक साथ ‘‘मा ल्याडकी जादुई कूंची’’ नामक रूचिकर धारावाहिक चित्रकथा पढ़ी। चित्रकथा इस प्रकार है: मा ल्याड नामक लड़के को एक जादुई कूंची मिली। वह जिस चीज का भी चित्र बनाता वह असली बन जाती थी। उसका चित्रित मुर्गाबांग दे सकता, हल भूमि जोत सकता...यह सब कितना मजेदार रहा होगा!
‘‘मेरे पास भी एक ऐसी जादुई कूंची होने से कितना अच्छा होगा!’’ घुँघराले बालों वाले श्याओ मान ने कहा।
‘‘यह नहीं हो सकता!’’ चश्मा पहने चओ मिडने जिसके पिता प्रांतीय प्रकाशन गृह के संपादक हैं, किसी सयाने के लहजे में कहा, ‘‘वह पौराणिक कथा ही है!’’
‘‘अगर...’’नाक ऊपर उठे वाला य्वानय्वान बोला।
‘‘ठीक है, अगर हमारे पास जादुई कूंची हो, तो हम किसका चित्र बनाएंगे?’’ अभी बाल कटवाकर आई छात्रा चाडश्याओली ने बड़ी–बड़ी आंखें झपकाते हुए पूछा।
‘‘हरेक को कूंची का सिर्फ़ एक बार इस्तेमाल करने की इजाजत दी जाएगी। सहमत हो?’’ वाडपिन ने कूंची को मुट्ठी में कस लेने की मुद्रा बनाकर संजीदगी से सुझाव रखा।
उन्होंने थोड़ी देर सोच–विचार किया। फिर वे एक स्वर में कहने लगे।
‘‘मैं एक बेहद नए डेस्क का चित्र बनाऊंगी। पिछली बार मैं मास्टर ऊ को अभ्यासकापी देने गई तो उनके डेस्क में एक बड़ी दरार पड़ी हुई देखी...’’ श्याओ मान ने कहा।
‘‘सुनो, मैं अपनी जूनियर फुटाल टीम के लिए एक उतने बड़े फुटबाल–ग्राडंड का चित्र बनाऊंगा, जितने बड़े फुटबाल–ग्राउंड का विश्व कप प्रतियोगिता के लिए इस्तेमाल किया गया था,’’ य्वानय्वान ने श्याओ मान की बात काटकर कहा।
‘‘मैं,’’ चओ मिडने इत्मीनान से कहा, ‘‘मैं सड़क पर खड़े यातायात पुलिस–चाचे को धूप और बारिश से बचाने के लिए इस्तेमाल किए जाते सायबान का चित्र बनाऊंगा।’’
‘‘मैं किसी और चीज का चित्र नहीं बनाऊंगा। सिफर् अपनी मां के लिए एक धो सकने, निचोड़ सकने और सुखा सकने वाली पूरी स्वचालित धुलाई मशीन का चित्र बनाऊंगा। मेरी मां ने बहुत कष्ट उठाए हैं....’’ वाड पिन ने मशीनगन से गोलियां चलने की रफ्तार से कहा।
चाडश्याओली की बोलने की बारी आई।
‘‘मैं...’’उसकी जबान रुक गई।
‘‘अरे, जल्दी बोलो!’’ सभी बड़बड़ाए।
‘‘मैं बहुत–बहुत सी आंखों का चित्र बनाऊंगी...’’उसने भावावेश में आगे कहा, ‘‘मैं ये आंखें अपने मां–बाप के सहकर्मियों को भेंट करूंगी।’’
सभी चुप हो गए। उन्होंने सोचा, अगर हमारे पास सचमुच जादुई कूंची हो और हम उसका सिर्फ़ एक ही बार इस्तेमाल कर सकते हों तो हम अवश्य ही पहले श्याओ ली को इस्तेमाल करने देंगे। सभी जानते हैं कि श्याओली के मां–बाप नगर सरकार द्वारा संचालित गली की नुक्कड़ पर स्थित दृष्टिहीनों के कारखानों में काम करते हैं।
°°°°°°°°°°°°°°°°°°°° |
|