मण्टो के सामने विभाजन की त्रासदी बहुत तीखे रूप में आई है । उसी तल्ख़ी से मण्टो ने साम्प्रदायिक उन्माद की निरर्थकता को रेखांकित किया है । यह लेखक अपनी बात बेवाकी से कहने में पीछे नहीं है ।
श्री सुकेश साहनी ने ख़लील ज़िब्रान, मण्टो और प्रेमचन्द की कई रचनाओं का उदाहरण देकर शिल्प ,चिन्तन एवं विषयवस्तु के अन्तर को रेखांकित किया ।तीनों लेखकों के सामने अलग- अलग प्रकार की चुनौतियां थीं , उसी की अनुगूँज इनकी रचनाओं में मिलती है । मंच संचालन डॉ श्यामसुन्दर ‘दीप्ति’ जी ने किया । आपने तीनों लेखकों के चिन्तन और लेखन का सूक्ष्म लेखा-जोखा प्रस्तुत किया ।
पंजाबी लघुकथा लेखन के लिए प्रतिवर्ष प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है । श्री हरभजन खेमकरणी जी ने विभिन्न विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए ।इसके उपरान्त पंजाबी लघुकथा-पाठ प्रस्तुत किया गया । लघुकथा-पाठ करने वालों में सतिपाल खुल्लर, प्रगट सिंह जम्बर, सुरजीत देवल, विवेक, गुरमेल चाहल, जसबीर ढंड, जगदेव मकसूदां, लाल सिंह कलसी, राजविंदर रौंता, भूपिंदरजीत कौर, मक्खन चौहान, रणजीत कोमल, ऊधम सिंह गिल्ल, जसवीर भलूरीआ, सुंदरपाल प्रेमी, दलजीत जोशी, बंसी लाल सचदेवा, जगदीश राय जेठी, अमृत लाल मन्नन, सरवन सिंह पतंग, मंगत कुलजिंद्र
आदि प्रमुख रहे ।
सरदार कर्मवीर सिंह को पंजाबी लघुकथाओं के अंग्रेज़ी अनुवाद पर ‘प्रिंसिपल भगत सिंह सेखों सम्मान’ दिया गया।
अपने सारगर्भित वक्तव्य में प्रो जीत सिंह जोशी जी ने कहा –कथाचिन्तकों ने लघुकथा की उपेक्षा की है । इस समागम के गम्भीर मंथन से इतना स्वयंसिद्ध है कि यह विधा अपना अपेक्षित सम्मान और स्थान अवश्य प्राप्त कर लेगी ॥ लघुकथा किसी समय सुनने-सुनाने की चीज़ थी ; वह अब समझने –समझाने की चीज़है। अच्छी रचना अभ्यास और गम्भीर मनन के बिना सम्भव नहीं है । रचनाकार का धर्मसाधारण किस्म का धर्म नहीं होता है। आज की विषम परिस्थियों में रचनाकार को बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है ।
श्री जसपाल मान ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।
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