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पंजाबी साहित्य अकादमी लुधियाना , त्रैमासिक मिन्नी एवं पंजाबी साहित्य सभा बठिण्डा के संयुक्त तत्त्वाधान में 26 अप्रैल 2009 को टीचर्स होम बठिण्डा में लघुकथा सेमिनार आयोजित किया गया ।कार्यक्रम की अध्यक्षता डॉ (प्रो) जीत सिंह जोशी , डॉ ए एस गिल(शिशु विशेषज्ञ), सुकेश साहनी ,श्री गुरदेव खोखर ,डॉ अनूप सिंह एवं श्री जगमोहन कौशिक ने की ।
इस अवसर पर मुंशी प्रेमचन्द खलील ज़िब्रान सआदत हसन मण्टो दीआँ मिन्नी रचनावाँ(प्रेमचन्द खलील ज़िब्रान ,सआदत हसन मण्टो की लघु रचनाएँ), मिन्नी त्रैमासिक के अंक -83 खलील ज़िब्रान विशेषांक :सम्पादक : स्याम सुन्दर अग्रवाल ,डॉ श्याम सुन्दर ‘दीप्ति’ एवं विक्रम जीत सिंह’नूर’, हाशीए तों मुड़दी ज़िन्दगी(नाटक) : जगदीश राय कुलरीआँ का विमोचन किया गया ।
‘महान लेखकों से लघुकथा की संवेदना समझने का प्रयास’ सन्दर्भ : मण्टो , प्रेमचन्द व खलील ज़िब्रान इस विषय पर विस्तार से चर्चा हुई । इस सन्दर्भ में डॉ अनूप सिंह ने कहा –जो परम्परा में अच्छा है , उसे ग्रहण कर लेना चाहिए । इन लेखकों की ऐसी बहुत –सी रचनाएँ हैं जो लघुकथा के शिल्प में पूरी नहीं उतरतीं । ऐसी बहुत –सी रचनएँ हैं ;जिनका कोई सामाजिक सरोकार नहीं है । लघुकथा के लिए दो गुण तो ज़रूरी हैं-1-आकार की लघुता, 2-कथा । आकार के अन्तर्गत पन्ने या पंक्तियाँ निर्धारित नहीं किए जा सकते ।
विषयवस्तु ही निर्धारित करती है कि रचना को उपन्यास , कहानी या लघुकथा क्या बनना है? लघुकथा में सामाजिक सार्थकता होना ज़रूरी है । हर विधा में अपवाद होते हैं । अपवाद साहित्य का अंग नहीं है ;क्योंकि वह किसी दिशा को निर्धारित नहीं कर सकता । कोई भी रचना सामाजिक समस्या से रूबरू हुए बिना सार्थक नहीं हो सकती ।लघुकथा के लिए भी इस दायित्व को वहन करना आवश्यक है । वह बुद्धू बक्से की तरह सपनों के संसार में नही ले जाती वरन् यथार्थ से साक्षात्कार कराती है । श्री निरंजन बोहा ने मण्टो , प्रेमचन्द एवं ख़लील जिब्रान की रचनाओं की पड़ताल लघुकथा के सन्दर्भ में करते हुए कहा कि हमें शिल्पगत विशेषता के बजाय इनके ऐतिहासिक महत्त्व को ध्यान में रखना ज़रूरी है । श्री श्यामसुन्दर अग्रवाल ने कहा – किसी लेखक की सभी रचनाएँ बेहतर नहीं हो सकतीं, सभी कथाएँ लघुकथाएँ नहीं हो सकतीं । किसी भी रचना को उसका सरोकार ही बेहतर बनाता है । ऐसे बहुत से विषय हैं ,जिन पर केवल लघुकथाएँ ही लिखी जा सकती हैं । इन लेखओं की सभी लघु रचनाओं को लघुकथा नहीं कहा जा सकता ।
रामेश्वर काम्बोज ‘हिमांशु’ ने कहा-हमें ख़लील ज़िब्रान, प्रेमचन्द और मण्टो की परिस्थितियों एवं समय को देखना होगा । ख़लील जिब्रान की कथाओं में दार्शनिकता का समावेश मिलता है । वे जहाँ मनुष्य के छद्म को अनावृत्त करते हैं ,वहीं बेहतर जीवन के लिए अपना नूतन चिन्तन भी प्रस्तुत करते हैं । प्रेमचन्द के सामने सामाजिक आदर्शोन्मुख यथार्थ है । उनका लेखन उसी पर केन्द्रित है ।
मण्टो के सामने विभाजन की त्रासदी बहुत तीखे रूप में आई है । उसी तल्ख़ी से मण्टो ने साम्प्रदायिक उन्माद की निरर्थकता को रेखांकित किया है । यह लेखक अपनी बात बेवाकी से कहने में पीछे नहीं है ।
श्री सुकेश साहनी ने ख़लील ज़िब्रान, मण्टो और प्रेमचन्द की कई रचनाओं का उदाहरण देकर शिल्प ,चिन्तन एवं विषयवस्तु के अन्तर को रेखांकित किया ।तीनों लेखकों के सामने अलग- अलग प्रकार की चुनौतियां थीं , उसी की अनुगूँज इनकी रचनाओं में मिलती है । मंच संचालन डॉ श्यामसुन्दर ‘दीप्ति’ जी ने किया । आपने तीनों लेखकों के चिन्तन और लेखन का सूक्ष्म लेखा-जोखा प्रस्तुत किया ।
पंजाबी लघुकथा लेखन के लिए प्रतिवर्ष प्रतियोगिताओं का आयोजन होता है । श्री हरभजन खेमकरणी जी ने विभिन्न विजेताओं को पुरस्कार प्रदान किए ।इसके उपरान्त पंजाबी लघुकथा-पाठ प्रस्तुत किया गया । लघुकथा-पाठ करने वालों में सतिपाल खुल्लर, प्रगट सिंह जम्बर, सुरजीत देवल, विवेक, गुरमेल चाहल, जसबीर ढंड, जगदेव मकसूदां, लाल सिंह कलसी, राजविंदर रौंता, भूपिंदरजीत कौर, मक्खन चौहान, रणजीत कोमल, ऊधम सिंह गिल्ल, जसवीर भलूरीआ, सुंदरपाल प्रेमी, दलजीत जोशी, बंसी लाल सचदेवा, जगदीश राय जेठी, अमृत लाल मन्नन, सरवन सिंह पतंग, मंगत कुलजिंद्र आदि प्रमुख रहे ।
सरदार कर्मवीर सिंह को पंजाबी लघुकथाओं के अंग्रेज़ी अनुवाद पर ‘प्रिंसिपल भगत सिंह सेखों सम्मान’ दिया गया।
अपने सारगर्भित वक्तव्य में प्रो जीत सिंह जोशी जी ने कहा –कथाचिन्तकों ने लघुकथा की उपेक्षा की है । इस समागम के गम्भीर मंथन से इतना स्वयंसिद्ध है कि यह विधा अपना अपेक्षित सम्मान और स्थान अवश्य प्राप्त कर लेगी ॥ लघुकथा किसी समय सुनने-सुनाने की चीज़ थी ; वह अब समझने –समझाने की चीज़है। अच्छी रचना अभ्यास और गम्भीर मनन के बिना सम्भव नहीं है । रचनाकार का धर्मसाधारण किस्म का धर्म नहीं होता है। आज की विषम परिस्थियों में रचनाकार को बहुत बड़ी लड़ाई लड़नी है ।
श्री जसपाल मान ने धन्यवाद ज्ञापित किया ।
 
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